उनाव निवासी श्याम पंडा ज्यादा बड़े किसान नही है इनके पास केवल डेढ़ हेक्टेयर यानि करीब 9 बीघा जमीन है लेकिन इस जमीन ने कुछ ही साल में मालामाल कर दिया। कुछ वर्षो पहले अमरूदों को उनाव का लड्डू कहा जाता था। लेकिन इन अमरूदों गिल्ट रोग लग गया और अमरूद खत्म होने लगे। लेकिन श्याम ने इस बीमारी से हार नही मानी और उन्होने नई तकनीक से अमरूद की खेती शुरु की केवल डेढ़ हेक्टेयर जमीन में इलाहाबादी सफेदा अमरूद लगाया। इसके साथ उन्होने देशी और इंदौरी अमरूद का बाग लगाया। बीमारी का भायवता को दर किनार करते हुएउन्होने महज तीन साल में लाखों रुपए कमा लिए।
रोपे थे 1200 पौधे
किसान श्याम पंडा के मुताबिक उन्होने तीन साल पहले 1200 पौधे रोपे थे। हर एक पौधे ने उन्हें एक हजार रुपए के अमरूद दिएवह भी हर साल यानि १२०० पौधों ने उन्हें साल में दो बार लाखों रुपए के अमरूद दिए। क्षेत्र की वह संपत्ति वापस आई जिसके लिए उनाव प्रसिद्ध था। खास बात यह है कि इस फसल में उन्हें ज्यादा लागत नही लगाना पड़ी। बल्कि सिंचाई और जरा से खाद की बदौलत उन्होने यह मुकाम हासिल किया। इस बारे में किसान श्याम का कहना है कि पूर्व के वर्षोमें उनाव क्षेत्र में अमरूदों के बाग हुआ करते थे। लेकिन गिल्ट रोग ने सभी बगीचों को बर्बाद कर दिया था। लेकिन उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद से उन्होने इस रोग से विजयी पाई और वापस पूर्वके दिनों में लौट रहे है।
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दो बार मिलते है फल
श्याम के मुताबिक डेढ़ बीघा में लगाए गए अमरूद के पौधो से उन्हें दो बार पैदावार मिलती है। एक बार को बरसात में और दूसरी बार सर्दियों में। अमरूदों की मांग इतनी है कि अभी दतिया व झांसी में ही इनकी खपत हो जाती है। लेकिन उम्मीद है कि अगले सीजन में उन्हें आगरा , दिल्ली समेत अन्य शहरों में उन्हें अमरूद ले जाना पड़े।