
तानसेन समारोहः फोटो पत्रिका
tansen samaroh 2025: तानसेन नगरी की हवाओं में आज भी सुरों की खुशबू तैरती है। इसी खुशबू का पीछा करते हुए हम तानसेन समाधि स्थल से करीब 800 मीटर दूर हजीरा चौराहे के पास पहुंचे, जहां एक छोटी सी फोटोकॉपी दुकान पर बैठे मिले सुरेंद्र भार्गव।
शाम छह बजे दुकान बंद कर वह उस घर लौट जाते हैं, जहां उनकी दुनिया बसती है—हजारों कैसेट, डीवीडी और पुराने रिकॉर्ड्स के बीच। तलत महमूद, गीता दत्त, के.एल. सहगल, मुकेश जैसे दिग्गज गायकों के दशकों पुराने एल्बम, उमराव जान, बाजार, निकाह जैसी फिल्मों के गीतों की कैसेट्स उनकी अलमारियों में आज भी मुस्कराती नजर आती हैं।
70 वर्षीय सुरेंद्र भार्गव ने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन कॉलेज के दिनों से तबले और हारमोनियम से उनकी दोस्ती रही। वे बताते हैं कि उस दौर में लोकगीत भी लिखे और गाए। उनकी पत्नी हेमा भार्गव कहती हैं, घर में संगीत न बजे, ऐसा कभी हुआ ही नहीं। चार दशक पुराना कैसेट प्लेयर आज भी उसी आत्मीयता से गाने सुनाता है। सिर्फ फिल्मी गीत ही नहीं, बल्कि ऑर्केस्ट्रा और इंस्ट्रूमेंटल रिकॉर्डिंग्स भी उनके संग्रह का हिस्सा हैं। कुछ सीडी और डीवीडी प्लेयर ऐसे भी हैं, जिन्हें केवल शौक में खरीदा गया, आज भी पैक्ड रखे हैं।
सुरेंद्र की संगीत-रसिक टोली अब सिमट चुकी है। कई साथी इस दुनिया से विदा ले चुके हैं। हैरत की बात यह है कि इतने बड़े संगीत प्रेमी होने के बावजूद वे पिछले कुछ वर्षों से तानसेन समारोह में नहीं जाते। वजह उम्र नहीं, बल्कि एक खामोश निराशा है। वे कहते हैं, अब शहर में महसूस ही नहीं होता कि तानसेन समारोह चल रहा है। पहले हजीरा क्षेत्र तक रौनक रहती थी, सड़कों पर रोशनी, रात भर संगीत की हलचल। अब सब कुछ सिर्फ समाधि स्थल तक सिमट गया है। समारोह से दूरी जरूर है, लेकिन सुरेंद्र भार्गव के जीवन में संगीत आज भी उसी शिद्दत से धड़क रहा है।
Updated on:
16 Dec 2025 06:58 pm
Published on:
16 Dec 2025 05:44 pm
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