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हरदा
जिला मुख्यालय से मसनगांव तक के क्षेत्र को आम के पेड़ों के लिए पहचाना जाना था। यहां कई प्रजातियों के सैंकड़ों आम के पेड़ लगे थे। हालांकि घनी अमराई के लिए जाने जाते क्षेत्र में अब आम के पेड़ खत्म से हो गए हैं। इसी के साथ ही देशी आमों की कई प्रजातियां भी लुप्त सी हो गईं हैं। देशी आमों की जगह तोतापरी, बादाम, लंगड़ा,केसर जैसे आमों ने ले ली है लेकिन लोग आज भी देशी आम के स्वाद के लिए तरसते हैं।
ऐसे पकाते थे आम
आम के सीजन में पेड़ों की दो माह रखवाली करने के बाद आम की साग गिरने के साथ ही इन्हें बेड कर अडी दबाई जाती थी। दस से पन्द्रह दिनों में यह पककर तैयार हो जाती थी। आम की पकी हुई अडी की भीनी-भीनी खुशबू से गलियां महक जाती थी। मुख्य रूप से आमन, नकवा, गोल्या, गुठली आदि प्रजातियों के आम के पकने का लोग इंतजार करते थे। पेड़ों को काटने से क्षेत्र में आम की प्रजातियां विलुप्त होती चली गई। हरदा से कड़ोला के बीच का क्षेत्र अमराई के नाम से पहचाना जाता था। किसानों के लालच तथा लकडी़ माफियाओं की वजह से देसी आमों का स्वाद अब नहीं मिलता।
अचार के लिए आज भी पंसद किया जाता है देशी आम
बारिश आने के साथ ही अब घर-घर में अचार बनाने का सिलसिला चल रहा है। आम के अचार बहुत चाव से घर में खाते जाते हैं। प्राय: घरों मेंं देशी आम के साथ राईं का और धने का अचार बनाया जाता है। क्षेत्र में भले ही पके हुए देशी आम मिलना कम हो गए हैं पर अचार के लिए आज भी देशी आम को पंसद किया जाता है। गृहणियां तेल-मिर्ची-राई-धने के साथ देशी आम का अचार डालती हैं जो सालभर तक खराब नहीं होता।
Published on:
18 Jul 2019 09:31 am
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