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नरेश अग्रवाल की चाणक्य बुद्धि के आगे बीजेपी कन्फ्यूज, जीत के लिए किस पर खेलें दांव!

लोहा से लोहा काटेगी बीजेपी या कुछ और गुल खिलाएगी हरदोई की सियासत...

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Naresh Agarwal and BJP strategy for Nikay Chunav 2017 in Hardoi UP

नरेश अग्रवाल की चाणक्य बुद्धि के आगे बीजेपी कन्फ्यूज, जीत के लिए किस पर खेलें दांव!

हरदोई. राजग गठबंधन के सदस्य रहे तत्कालीन लोकतांत्रिक कांग्रेस के सुप्रीमो, भाजपा के सहयोगी दल के रूप में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री और सपा से मौजूदा राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल के सियासी पैतरों के बारे में भाजपा हाईकमान तक खबर रहती है। दरअसल करीब 4 सालों तक नरेश अग्रवाल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक सीधे जुड़े रहे और उनकी दोस्ती भी बेमिसाल रही। अभी भी पुराने रिश्तों के चलते नरेश अग्रवाल के निजी स्तर पर बड़े भाजपा नेताओं से निजी कार्यक्रमों में मिलना जुलना होता रहता है।

राजनीतिक किला नहीं भेद पाया कोई

नरेश अग्रवाल के सियासी पैंतरों के चलते मोदी-योगी की लहर के बाद भी हरदोई सिटी में सपा ने भाजपा को रोके रखा है। नरेश ने अपने राजनीतिक किले के आस- पास भी भाजपा को आने नहीं दिया। इसके लिए उनके पास तमाम सियासी पैंतरे और राजनीतिक चाणक्य का कौशल है। यह बात भाजपा को अच्छे से पता है और नरेश अग्रवाल भी जानते है कि केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है। लिहाजा निकाय चुनावों में अपने और सपा के राजनीतिक किले को बचाना आसान नहीं है, इसलिए उन्होंने ब्राम्हण कार्ड खेलकर सदर सीट पर भाजपा को रोकने की पूरी तैयारी की है। इसके जवाब में भाजपा वैश्य कार्ड खेलकर नरेश के किले में सेंधमारी कर सदर सीट कब्जाने की रणनीति पर काम कर सकती है। हांलाकि इसको लेकर सियासी पंडितों की अलग- अलग राय है। फिलहाल नरेश अग्रवाल के ब्राम्हण कार्ड के बाद भाजपा की चाल का लोगों को इंतजार है। भाजपा ब्राम्हण के खिलाफ ब्राम्हण उतार कर लोहे से लोहा काटने की रणनीति अपनाएगी या फिर लोहे को पिघलाने के लिए आपसी फूट की चिंगारी लगाएगी। इसको लेकर सभी की नजरें लगी हुई हैं।

अर्जुन को लेकर श्रीकृष्ण की मुस्कान में छिपा है रहस्य

निकाय चुनाव तो पूरे प्रदेश में हो रहे हैं, लेकिन हरदोई प्रथम चरण में है सो निर्धारित चुनावी कार्यक्रम के तहत जिले में 7 नगर पालिकाओं व 6 नगर पंचायतों के अध्यक्षों एवं सभासदों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बीते दो दिनो में नामांकन को लेकर सत्ता पक्ष भाजपा को छोड़कर कमोवेश अन्य दलों से संभावित प्रत्याशी और निर्दल प्रत्याशी नामांकन पत्रों को खरीद भी रहे हैं। ऐसे में सभी की निगाहें भाजपा पर लगी हुई हैं। दरअसल सत्तादल होने के कारण भाजपा के लिए इस बार के चुनाव बेहद खास हैं।

बीजेपी जीतना चाहती है सभी सीट

भाजपा के लिए निकाय चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि पूरे जिले में भगवा रंग चढ़ाने के लिए सभी 7 नगर पालिकाओं एवं 6 नगर पंचायतों पर भाजपा की विजय पताका फहराने की चाहत है। यह चाहत इसलिए भी है कि 2014 लोकसभा चुनावों से मोदी लहर में जबरदस्त सुनामी की वापसी करने वाली भाजपा ने दोनों लोकसभा सीटों पर जीत का परचम फहराया और फिर जीत के परचम को लेकर विजय रथ पर सवार भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2017 में जिले की कुल 8 सीटों में 7 पर विजय पताका फहरा दी। एक सीट पर हार का मुंह देखनी वाली भाजपा के थिंक टैंक का भी मानना है कि मोदी योगी की सुनामी में भी जिस सदर सीट पर भाजपा नरेश अग्रवाल के किले को ढहा नहीं पाई, उस किले को ढहाने के लिए निकाय चुनाव बेहतरीन मौका है। ताकि आगामी लोकसभा चुनावों में हर तरफ भगवा रंग फहराता रहे। शायद यही वजह रही कि निकाय चुनाव के महाभारत में भाजपा के जिलाध्यक्ष सभी अध्यक्ष पदों के लिए अर्जुन की तलाश पूरी कर चुके हैं। इरादा साफ है और लक्ष्य भी साफ है कि सभी सीटों पर भगवा रंग लाना है। लिहाजा अर्जुन की सिर्फ लक्ष्य भेदन पर ही नजर रहेगी।


भाजपा सभी सीटों पर भगवा रंग लाने के लक्ष्य पर

जिले में निकाय चुनाव की 13 सीटों में सदर नगर पालिका सीट को छोड़कर कमोवेश सभी सीटों पर भाजपा के अवध क्षेत्र के वरिष्ठ नेता नीरज सिंह, गोविंद पाण्डेय और जिलाध्यक्ष श्रीकृष्ण शास्त्री अंतिम निष्कर्ष बना चुके हैं, मगर सदर सीट पर मुकाबला सीधे- सीधे सपा के राष्ट्रीय महासचिव सांसद राज्यसभा नरेश अग्रवाल के समर्थन से लड़ने वाले प्रत्याशी से होगा। इसलिए भाजपा के लिए सदर सीट से प्रत्याशी तय करना आसान नहीं है। भाजपा की कोशिश रहेगी कि हर हाल में सदर सीट से भगवा रंग चढ़े। इसलिए कड़े मुकाबलेदार के लिए टिकट का फैसला भी मजबूती से होगा।