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भक्त प्रह्लाद की नगरी में प्रह्लादघाट ही बेहाल, जानिये क्या है पूरी कहानी

अब किसी के द्वारा प्रहलाद की गाथा और स्मरणीय स्थलों को संवारने और सहेजने की प्रतीक्षा है।

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भक्त प्रह्लाद की नगरी में प्रह्लादघाट ही बेहाल, जानिये क्या है पूरी कहानी

हरदोई. यूपी के हरदोई में स्थित भक्त प्रह्लाद घाट और उनकी भक्ति गाथा को सहेजने को लेकर आज भी लोंगों को किसी चमत्कार की उम्मीद और उस अवतारी का इंतजार है जो कि भक्त प्रहलाद की भक्ति गाथा को पौराणिक स्थल और पर्यटन स्थल के रूप स्थापित करे दे। भक्त प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न भगवान ने प्रहलाद के लिए नरसिंह के रूप में अवतार लेकर भक्त और भक्ति के मान की रक्षा की थी। इसी तरह अब किसी के द्वारा प्रहलाद की गाथा और स्मरणीय स्थलों को संवारने और सहेजने की प्रतीक्षा है।

प्रह्लाद घाट और मंदिर कह रहे भक्ति की गाथा
हरदोई शहर के निकट सांडी रोड स्थित भक्त प्रहलाद घाट को लेकर कहा जाता है राजा हिरण्यकशप ने अपने बेटे की भक्ति से खफा होकर उसे अपने महल जो काफी ऊंचे टीले पर बना था से प्रहलाद को फेंक दिया था। जो इसी प्रहलाद घाट में गिरा। इसके बावजूद प्रहलाद का बाल-बांका नहीं हुआ। एक दिन उसने प्रहलाद को तलवार से मारने का प्रयास किया, तब भगवान नरसिंह खम्भे से प्रकट हुए और हिरण्यकशप को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त की रक्षा की। कहा जाता है कि हिरण्यकशप की मृत्यु के बाद नरसिंह भगवान का क्रोध इतना प्रबल था कि हिरण्यकश्यप को मार डालने के बाद भी कई दिनों तक वे क्रोधित रहे। अंत में, भगवती लक्ष्मी ने प्रह्लाद से सहायता मांगी और वह तब तक भगवान विष्णु का जप करता रहा जब तक कि वे शांत न हो गये। हरदोई के सांडी रोड स्थित प्रहलाद घाट के निकट स्थित नरसिंह बमंदिर में उन्हें शांत स्वरूप में देखा जा सकता है। नरसिंह भगवान का मंदिर और प्रह्लाद घाट पौराणिक गाथा की याद दिलाते है ।


तो मान्यता है कि होली की हुई थी हरदोई से शुरुआत

मान्यता है कि होली का हरदोई से गहरा नाता है। इसीलिए इस त्योहार पर जिले के इतिहास की यादें ताजा होने लगती हैं। हरदोई नगरी का नामकरण राजा हिरण्यकशप की नगरी के आधार पर ही होना कहा जाता है। कारण राजा हिरण्यकशप को हरि का द्रोही कहा जाता था। बतातें हैं कि पूर्व में हरदोई नगरी का नाम भी हरि द्रोही था। बाद में इसके संशोधित करके हरदोई किया गया। राजा हिरण्यकशप की नगरी होने का प्रमाण आज भी शहर के सांडी रोड पर बने कई ऊंचे टीले साबित कर रहे हैं। जो किसी महाराजा की नगरी होने की बयां कर रहे हैं।

तो ऐसे पड़ी होली की परंपरा
पुरातन काल की कथानुसार अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए राक्षस राज हिरण्यकशप ने कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न कर उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान प्राप्त करते ही वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा और उन्हें यातनाएं और कष्ट देने लगा। जिससे प्रजा अत्यंत दुखी रहती थी। इन्हीं दिनों हिरण्यकशप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रहलाद रखा गया। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी बचपन से ही श्री हरि भक्ति से प्रह्लाद को गहरा लगाव था। हिरण्यकशप ने प्रहलाद का मन भगवद भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए, परन्तु वह सफल नहीं हो सका। यहां तक कि उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठालकर प्रह्लाद को जलाने का षड्यंत्र भी रचा। होलिका हिरण्याक्ष और हिरण्यकशप नामक दैत्य की बहन और प्रह्लाद नामक विष्णु भक्त की बुआ थी उसको यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए विष्णु-विरोधी हिरण्यकशप ने उसे आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए, जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए। होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। ईश्वर कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। होलिका की याद में होली का उत्सव मनाया जाता है।