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Covid 19 effects- बीते जमाने की बातें जो फिर से बन रहीं स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा

कोरोना लॉकडाउन से पहले हर कोई अपनी प्रोफेशनल लाइफ में व्यस्त था। प्रगति का पैमाना आर्थिक होकर रह गया था। परिवार, दोस्त-रिश्तेदार पीछे छूटते जा रहे थे। लोग अपनी सेहत पर भी कम ध्यान दे पा रहे थे। लेकिन अब सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

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Covid 19 effects- बीते जमाने की बातें जो फिर से बन रहीं स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा

Covid 19 effects- बीते जमाने की बातें जो फिर से बन रहीं स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा

खानपान और व्यवहार
युवाओं को अब पारंपरिक खाने का स्वाद आने लगा है। मार्केट फूड से जुड़ी बीमारियां घटेंगी। पहले की तरह किचन में जूते-चप्पल नहीं ले जाने का महत्व बढ़ा है। हमारे नमस्कार-प्रणाम को दुनिया ने संक्रमण घटाने में मददगार माना है।
परिवार के साथ भोजन
लॉकडाउन में लोगों को परिवार का महत्व समझ में आया है। एकसाथ बैठकर खाने के भी कई लाभ हैं। समस्याओं को साझाकर तनावरहित मन से भोजन ग्रहण करते हैं। इससे पाचन व हार्मोन से जुड़े रोगों से बचाव होता है।
रचनात्मकता बढ़ी है
प्रकृति को नजदीक से जानने का मौका मिला है। लोगों में रचनात्मकता बढ़ी है। कुछ लोग किताबें पढऩे, लेखन या चित्रकारी जैसे पुराने शौक से फिर जुड़े हैं।
योग-व्यायाम से जुड़े
जो पहले व्यस्तता के कारण सेहत पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे, वे अब योग-व्यायाम करने लगे हैं। सीमित संसाधनों की शिकायतें करने वाले अब कम में भी जीने का महत्व समझने लगे हैं।
आयुर्वेद और नुस्खों पर भरोसा बढ़ा है
इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काढ़े से लेकर गुनगुना पानी-नमक के गरारे जैसे आयुर्वेदिक उपाय व दादी-नानी के नुस्खों को अपना रहे हैं। इससे सेहत व इम्युनिटी में सुधार दिखेगा। मन की शांति के लिए अध्यात्म से भी जुड़ रहे हैं।
अन्य बीमारियों में राहत
पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया का कहना है पिछले दिनों हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक और दूसरी इमरजेंसी के मामले कम आए। इसकी कई वजह हो सकती हैं। इसमें भागदौड़ का कम होना, पर्याप्त नींद लेना, परिवार का साथ आदि है। सोशल डिस्टेंसिंग और बाहर की चीजें नहीं खाने से भी राहत है।
मानसिक मजबूती के साथ कई अन्य फायदे
छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर परेशान होने वाली युवा पीढ़ी को मानसिक मजबूती मिली है। केवल वर्तमान को सबकुछ मानने वाले युवाओं को समझ में आ गया है कि भविष्य को भी ध्यान में रखना जरूरी है। इसमें घर के बड़े-बुजुर्गों का साथ व सलाह भी काफी मददगार रही है।
ऐसे लोग जो कामकाज की व्यस्तता के कारण अपने आसपास के लोगों को पहचानते नहीं थे वे भी अब आपसी संवाद करने लगे हैं।
रोज नशा करने वालों को लगता था कि वे इसके बिना जी नहीं पाएंगे। अब दो महीने बिना नशे के सेहत अच्छी हुई तो यह लत भी छूट जाएगी।