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Auto immune diseases in women : 20 की उम्र में 70% महिलाएं ऑटोइम्यून की शिकार ! जानिए शुरुआती लक्षण और बचाव के तरीके

Auto immune diseases in women : भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों के 70% मरीज महिलाएं हैं। जानिए कैसे हार्मोनल बदलाव, प्रदूषण और तनाव महिलाओं में इम्यून सिस्टम को कमजोर कर रहे हैं। साथ ही समझें शुरुआती लक्षण, बचाव और विशेषज्ञों की चेतावनी।

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भारत

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Dimple Yadav

Oct 14, 2025

Auto immune diseases in women

Auto immune diseases in women photo- gemini ai)

Auto immune diseases in women : भारत में तेजी से बढ़ रहे ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Diseases) अब एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनते जा रहे हैं, खासकर महिलाओं के लिए। हाल ही में आयोजित भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के 40वें सम्मेलन में सामने आए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। देश में ऐसे हर 10 मरीजों में से लगभग 7 महिलाएं हैं। डॉक्टरों के अनुसार, हार्मोनल बदलाव, आनुवंशिक प्रवृत्ति और जीवनशैली से जुड़े कारण इन बीमारियों की जड़ में हैं।

महिलाओं में क्यों ज्यादा बढ़ रहे ऑटोइम्यून रोग?

वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि महिलाओं का इम्यून सिस्टम पुरुषों की तुलना में अधिक सक्रिय होता है, जिससे वे संक्रमणों से बेहतर लड़ पाती हैं। लेकिन यही इम्यून सिस्टम कभी-कभी शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को दुश्मन समझकर उन पर हमला करने लगता है, जिससे ऑटोइम्यून विकार जन्म लेते हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार, महिलाओं के शरीर में पाया जाने वाला एक विशेष अणु ज़िस्ट आरएनए (Xist RNA) कभी-कभी इम्यून सिस्टम को भ्रमित कर देता है, जिससे शरीर अपने ही अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है।

कौन-कौन सी होती हैं ये बीमारियां?

जब शरीर की रक्षा प्रणाली गलती से अपने ही ऊतकों पर हमला करती है, तब रुमेटाइड आर्थराइटिस, ल्यूपस, थायरॉइडाइटिस, सोरायसिस, स्जोग्रेन सिंड्रोम जैसी बीमारियां होती हैं। ये न केवल त्वचा और जोड़ों बल्कि हृदय, फेफड़े और किडनी जैसे आंतरिक अंगों को भी प्रभावित करती हैं। आमतौर पर 20 से 50 वर्ष की आयु के बीच महिलाओं में इन बीमारियों का खतरा सबसे अधिक रहता है, क्योंकि इस समय हार्मोनल और जीवनशैली से जुड़े बदलाव तेज़ी से होते हैं।

देर से इलाज बन रहा है बड़ी समस्या

एम्स दिल्ली की डॉ. उमा कुमार बताती हैं कि उनके ओपीडी में 70% से अधिक मरीज महिलाएं होती हैं, जिनमें से कई देर से इलाज के लिए आती हैं। वे शुरुआती लक्षण जैसे थकान, जोड़ों का दर्द या सूजन को अक्सर नजरअंदाज कर देती हैं। फोर्टिस अस्पताल के डॉ. बिमलेश धर पांडेय के अनुसार, कई महिलाएं वर्षों तक अस्पष्ट दर्द से जूझती रहती हैं और जब तक डॉक्टर के पास पहुंचती हैं, तब तक बीमारी अंगों को नुकसान पहुंचा चुकी होती है।

डॉ. नीरज जैन (सर गंगाराम अस्पताल) बताते हैं कि भारत में सामाजिक और पर्यावरणीय कारण भी ऑटोइम्यून रोगों को बढ़ावा दे रहे हैं। कई मरीज विशेषज्ञ तक पहुंचने से पहले गलत इलाज करवा चुके होते हैं। वहीं डॉ. रोहिणी हांडा (इंद्रप्रस्थ अपोलो) के अनुसार, यह बीमारी अब मधुमेह या हृदय रोग जितनी आम होती जा रही है, लेकिन इस पर ध्यान बहुत कम है।

बढ़ते प्रदूषण और तनाव से बढ़ रहा खतरा

विशेषज्ञों के अनुसार, वायु प्रदूषण, अनहेल्दी आहार, तनाव, और नींद की कमी भारतीय महिलाओं में इन बीमारियों का बड़ा कारण हैं। रसायनों और प्रदूषकों के संपर्क से हार्मोनल संतुलन बिगड़ता है और इम्यून सिस्टम गड़बड़ा जाता है।

भारत में एक्सपर्ट की भारी कमी

वर्तमान में देश में 1,000 से भी कम रूमेटोलॉजिस्ट हैं, जबकि करोड़ों लोग इन बीमारियों से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे कैंसर और प्रेग्नेंसी जांच होती है, वैसे ही ऑटोइम्यून बीमारियों की नियमित जांच भी जरूरी है। शुरुआती पहचान और सही इलाज से कई महिलाओं को जीवनभर की विकलांगता से बचाया जा सकता है।