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गुमसुम रहना भी बीमारी का एक लक्षण, जानें इसके बारे में

इनके मरीज किसी भी कार्य को करने का अपना तरीका बनाते हैं,इसमें कोई बदलाव इन्हें पसंद नहीं आता। रोग से पीडि़त व्यक्ति अलग व अकेला रहना पसंद करते हैं।

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जयपुर

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Vikas Gupta

Aug 26, 2017

Being Gumsam is also a symptom of disease

इनके मरीज किसी भी कार्य को करने का अपना तरीका बनाते हैं,इसमें कोई बदलाव इन्हें पसंद नहीं आता। रोग से पीडि़त व्यक्ति अलग व अकेला रहना पसंद करते हैं।

अक्सर गुमसुम रहना, दूसरे लोगों से घुलने-मिलने से बचना,अपने मन की बात दूसरों को को आसानी से न समझा पाना जैसे लक्षण तीन साल की उम्र से लेकर जीवनभर दिख सकते हैं। ये लक्षण एस्पर्जर सिंड्रोम के हो सकते हैं। जो ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिस्ऑर्डर का एक प्रकार है।
इनके मरीज किसी भी कार्य को करने का अपना तरीका बनाते हैं,इसमें कोई बदलाव इन्हें पसंद नहीं आता। रोग से पीडि़त व्यक्ति अलग व अकेला रहना पसंद करते हैं। इससे ग्रसित बच्चों की सीखने की क्षमता धीमी होती है। ये बोलने और नई भाषा सीखने में देरी करते हैं।इससे पीडि़त कई मरीज बहुत प्रतिभावान भी होते हैं,वे किसी एक फील्ड जैसे म्यूजिक,एक्टिंग जैसा कोई एक काम बहुत अच्छी तरह से कर दिखाते है। ये बहुत कम चीजों को एंजॉय करते है जैसे उन्हें डांस करना पसंद है तो जरूरी नहीं कि म्यूजिक भी उन्हें अच्छा लगे। ये दूसरों की आंखों में देखकर बात करने से कतराते है।


कारण : रोग की मुख्य वजह फिलहाल अज्ञात है। एक्सपट्र्स का मानना है कि ये एक जेनेटिक बीमारी है। यानी परिवार में किसी को यह समस्या होगी तो उसके आगे की पीढ़ी में भी ये हो सकती है।इस बीमारी का पूरी तरह से निदान संभव नहीं है लेकिन कुछ थैरेपी और काउंसलिंग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

जैसे स्पेशल एजुकेशन, स्पीच थैरेपी, अभिभावकों की काउंसलिंग, सामाजिक मेल-मिलाप व व्यवहार में बदलाव और दवाएं। साइकोलॉजिस्ट, स्पीच थैरेपिस्ट और चिकित्सक एक टीम वर्क के रूप में इसका इलाज करते हैं। उपचार से बच्चे सामाजिक व्यवहार व संवाद में आने वाली समस्याओं को नियंत्रित करना सीखते हैं।


अन्य कारण

जब कोई एक इंसान सही से सोच नहीं पाता, उसका खुद के भावनाओं व स्वभाव पर काबू नहीं रह पाता है , तो समझ लीजिये की वो इंसान इस रोग से ग्रसित है। कई लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, लेकिन ये रोग कोई मामूली रोग नहीं है, इससे ग्रसित लोग पूरी तरह से पागल भी हो सकते है। अतः समय रहते इस रोग के लक्षण को पहचान कर उचित इलाज करना चाहिए। ताकि जल्द से जल्द इस रोग से बाहर निकला जा सके।

रोग के लक्षण

किसी फंक्शन में सब से कट कट के अकेले रहना।

अपने आप से बात करना।

कोई भी बात समझने में मुश्किल होना।

रात रात भर नींद ना आना या बार बार रात में अकेले जागना।

कम बोलना और खुद में गुमसुम रहना।

बात बात पर डरना।

दूसरों पर हमेशा शक करना।

किसी के मृत्यु पर ना रोना और ना ही उसे स्वीकार न करना ।

बात बात पर जरुरत से लड़ना, झगड़ना, बहस करना।

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