
hmpv virus in india
HMPV Symptoms : साल 2000 में, नीदरलैंड के कुछ वैज्ञानिकों ने पता लगाने की कोशिश की कि लोगों को सांस संबंधी बीमारियां क्यों होती हैं। इस दौरान, उन्हें एक ऐसा वायरस मिला जिसके बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी। इस नए वायरस को मानव मेटा न्यूमोवायरस (HMPV) नाम दिया गया।
साल 2001 में, वैज्ञानिकों ने इस वायरस के बारे में और जानकारी जुटाई। उन्हें पता चला कि यह वायरस नीदरलैंड में बहुत पहले से ही मौजूद था, कम से कम 1958 से!
हाल ही में, चीन में इस वायरस के मामले तेजी से बढ़े हैं। इससे चिंता बढ़ गई है।
डॉक्टर राजेश कार्यकर्ते, जो पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉज़ी के प्रोफेसर हैं, ने एक राष्ट्रीय मीडिया को बताया कि हमारा शरीर अब इस वायरस के साथ रहने का आदी हो गया है। ज्यादातर लोगों को इस वायरस से कोई ख़ास दिक्कत नहीं होती है या बहुत हल्का संक्रमण होता है। लेकिन कुछ लोगों, खासकर जिन लोगों को पहले से कोई बीमारी है, को इससे गंभीर समस्या हो सकती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। यह कोरोना वायरस के मामले में भी ऐसा ही था और HMPV के मामले में भी ऐसा ही है। लेकिन कोरोना वायरस के विपरीत, HMPV बहुत समय से मौजूद है और ऐसा कोई सबूत नहीं है कि यह भारत में पहले से ज्यादा तेजी से फैल रहा है।
डॉ. जी.सी. खिलनानी ने एक राष्ट्रीय मीडिया से कहा कि "यह वायरस उन लोगों के लिए अधिक खतरा है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है और बुजुर्गों के लिए भी।" डॉ. खिलनानी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वैश्विक वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य हैं, और पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष हैं।
मधुमेह, हृदय रोग या किडनी की बीमारी जैसी पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं वाले बुजुर्ग व्यक्तियों को विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है। जबकि स्वस्थ वयस्कों में हल्के लक्षण दिखाई देते हैं, बुजुर्ग रोगियों में गंभीर जटिलताएं विकसित हो सकती हैं।
HMPV एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को खांसने या छींकने से निकलने वाली बूंदों के जरिए फैलता है। इस वायरस के लक्षण दिखने में 3 से 5 दिन लग सकते हैं, लेकिन यह समय बदल भी सकता है। अमेरिका के रोग नियंत्रण केंद्र के अनुसार, HMPV के लिए कोई खास दवा नहीं है और इसका कोई टीका भी नहीं बना है। इस बीमारी का इलाज करने के लिए रोगी की देखभाल पर ध्यान दिया जाता है।
हल्के मामले: सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण
गंभीर मामले: निमोनिया या ब्रोन्कोन्यूमोनिया
HMPV की जांच करने के लिए अक्सर खास तरह की जांच की जाती है। एक ऐसी जांच है जिसका नाम "बायोफायर पैनल" है। इस जांच में एक ही बार में कई तरह के कीटाणुओं की पहचान की जा सकती है, और इसमें HMPV वायरस भी शामिल है। भारत में कई निजी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में यह जांच की जाती है, लेकिन इसकी कीमत काफी ज्यादा होती है।
सही इलाज के लिए: अगर पता चल जाए कि किस वायरस से संक्रमण हुआ है, तो उसके हिसाब से इलाज किया जा सकता है।
दूसरों को बचाने के लिए: अगर किसी व्यक्ति में HMPV का संक्रमण पाया जाता है, तो उसे सावधानी बरतने और दूसरों से दूर रहने की सलाह दी जाती है, जिससे संक्रमण और न फैले।
बच्चे और बुजुर्गों के लिए: बच्चों और बुजुर्गों में HMPV संक्रमण ज्यादा गंभीर हो सकता है। इसलिए, अगर उन्हें सांस संबंधी समस्याएं हैं तो इस जांच की सलाह दी जा सकती है।
क्या करें?
सावधानी बरतें: अगर आपको खांसी, जुकाम, बुखार या सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो सावधानी बरतें। मास्क पहनें, हाथों को बार-बार धोएं और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें।
डॉक्टर से सलाह लें: अगर आपको लक्षण दिखाई दें तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें। वे आपको जांच और इलाज के बारे में सही जानकारी देंगे।
HMPV का संक्रमण बच्चों में ज्यादा आम है, खासकर छोटे बच्चों में जो दो साल से कम उम्र के हैं।
इस वायरस के कारण कुछ बच्चों को सांस लेने में बहुत दिक्कत हो सकती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। लगभग 5 से 10 प्रतिशत बच्चे अस्पताल में भर्ती हो सकते हैं।
छह महीने से कम उम्र के बच्चों को इस वायरस से ज्यादा खतरा होता है। इन बच्चों को अस्पताल में भर्ती होने की संभावना उन बच्चों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होती है जो 6 महीने से 5 साल के बीच के हैं।
क्या करें?
चीन में वायरस के मामले इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों को वायरस से बचाव के लिए कई तरह के नियमों के कारण वायरस के संपर्क में नहीं आना पड़ा। इन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, इसलिए उनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा है।
डॉक्टर कार्यकर्ते ने बताया कि ठंड के मौसम में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ठंडी और सूखी हवा में नाक का बलगम कमजोर हो जाता है। बलगम नाक को संक्रमण से बचाता है, लेकिन ठंड में यह कमजोर हो जाता है, जिससे वायरस आसानी से नाक की कोशिकाओं तक पहुंच सकते हैं और संक्रमण फैल सकता है।
पुणे में 2003 में हुए एक अध्ययन में: 26 बच्चों में से 19.2% बच्चों में HMPV पाया गया। इनमें से अधिकांश बच्चे एक साल से कम उम्र के थे। इन बच्चों में हल्के से लेकर गंभीर संक्रमण तक देखे गए।
2006 में AIIMS के एक अध्ययन में: पांच साल से कम उम्र के 12% बच्चों में, जिनमें सांस संबंधी बीमारी थी, HMPV पाया गया। ज्यादातर मामले सर्दियों के महीनों में सामने आए।
2013 में NIV पुणे के एक अध्ययन में: 224 नमूनों का विश्लेषण किया गया और कई तरह के HMPV स्ट्रेन (A2, B1 और B2) पाए गए। A2 और B2 सबसे ज्यादा पाए गए।
2014 में असम में हुए एक अध्ययन में: 5 साल से कम उम्र के 276 बच्चों में से 20 बच्चों (7.2%) में HMPV पाया गया। इस अध्ययन में यह भी देखा गया कि जनवरी (46.7%) में HMPV के सबसे ज्यादा मामले पाए गए, उसके बाद दिसंबर (16.7%) में।
2024 में गोरखपुर में ICMR के एक अध्ययन में: सांस संबंधी बीमारी वाले 100 बच्चों में से 4% बच्चों में HMPV पाया गया। इनमें से एक बच्चे की मौत हो गई।
- हाथों को साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं।
- बीमार लोगों के संपर्क में आने से बचें।
- बिना हाथ धोए अपनी आंख, मुंह और नाक को छूने से बचें।
- खांसते या छींकते समय अपने मुंह और नाक को ढकें।
- बीमार होने पर घर पर ही रहें।
- दरवाजों के हैंडल, टेबल जैसी सतहों को नियमित रूप से साफ करें।
इन बातों का पालन करने से बीमारियों से बचाव हो सकता है। अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए यह ज़रूरी है।
हाथ धोते समय साबुन का उपयोग करें और ध्यान दें कि सभी हिस्से अच्छे से साफ हो जाएं, जैसे उंगलियों के बीच, नाखूनों के नीचे। अगर साबुन और पानी उपलब्ध नहीं है, तो सैनिटाइज़र का उपयोग करें जिसमें कम से कम 60% अल्कोहल हो।
अगर आप बीमार महसूस कर रहे हैं, तो घर पर आराम करें और दूसरों से दूरी बनाए रखें। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। जिन जगहों को बार-बार छुआ जाता है, उन्हें दिन में कई बार साफ करें। इसके लिए सामान्य डिसइंफेक्टेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्वस्थ रहने के लिए खुद का और दूसरों का ध्यान रखना हमारी जिम्मेदारी है।
अपनी आदतों में इन उपायों को शामिल करें और दूसरों को भी इसके बारे में जागरूक करें।
सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें।
Updated on:
07 Jan 2025 02:25 pm
Published on:
07 Jan 2025 11:36 am
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