एडवर्ड
जेनर एक प्रसिद्ध कायचिकित्सक थे। विश्व में इनका नाम इसलिए भी प्रसिद्ध
है कि इन्होंने 'चेचक' के टीके का आविष्कार किया था। एडवर्ड जेनर के इस
आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो रहे हैं और
अपने जीवन का आनन्द ले रहे हैं।
यदि एडवर्ड जेनर नहीं होते तो आज सम्पूर्ण
दुनिया के 1.5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष सिर्फ़ 'चेचक' के द्वारा काल के ग्रास
बन रहे होते। एडवर्ड जेनर का जन्म 17 मई, 1749 ई. में बर्कले में हुआ था।
'उट्टन' में अपनी प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरांत ये सन 1770 में
लंदन गय थे और सन 1792 में 'ऐंड्रय्ज कॉलेज' से एम. डी. की उपाधि प्राप्त
की।
चेचक के दवा की खोजअपने विद्यार्थी जीवन काल में ही
एडवर्ड जेनर ने कैप्टेन कुक की समुद्री यात्रा से प्राप्त प्राणिशास्त्रीय
नमूनों को व्यवस्थित करना प्रारम्भ कर दिया और शोध कार्य में लग गए। सन
1775 में इन्होंने सिद्ध किया कि 'गोमसूरी' में दो विभिन्न प्रकार की
बीमारियाँ सम्मिलित हैं, जिनमें से केवल एक 'चेचक' से रक्षा करती है।
एडवर्ड जेनर ने यह भी निश्चित किया कि 'गोमसूरी', 'चेचक' और 'घोड़े के पैर
की ग्रीज़' नामक बीमारियाँ अनुषंगी हैं। 1798 में इन्होंने 'चेचक के टीके
के कारणों और प्रभावों' पर एक निबंध भी प्रकाशित किया।
क्या है चेचकचेचक
मानव में पाया जाने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग से अधिकांशत: छोटे
बच्चे ग्रसित होते हैं। यह रोग जब किसी व्यक्ति को होता है, तब इसे ठीक
होने में 10 से 15 दिन लग जाते हैं। किंतु रोग के कारण चेहरे आदि पर जो
दाग़ पड़ जाते हैं, उन्हें ठीक होने में लगभग पाँच या छ: महीने का समय लग
जाता है। यह रोग अधिकतर बसन्त ऋतु या फिर ग्रीष्म काल में होता है। यदि इस
रोग का उपचार जल्दी न किया जाए तो रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो
सकती है।
पुरस्कार 1803 में 'चेचक' के टीके के प्रसार के
लिये 'रॉयल जेनेरियन संस्था' की स्थापना हुई। एडवर्ड जेनर के कार्यों के
उलक्ष्य में 'आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय' ने इन्हें 'एम. डी.' की सम्मानित
उपाधि से विभूषित किया। 1822 में 'कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का
प्रभाव' पर निबंध प्रकाशित किया और दूसरे वर्ष 'रॉयल सोसाइटी' में 'पक्षी
प्रर्वाजन' पर निबंध लिखा। 26 जनवरी 1823 को बर्कले में एडवर्ड जेनर का
देहान्त हो गया।