
Heart Attack Warning Signs (photo- freepik)
Heart Attack Warning Signs: आज भी दुनियाभर में दिल की बीमारियां (हार्ट अटैक और स्ट्रोक) मौत की सबसे बड़ी वजहों में से एक हैं। डॉक्टर आमतौर पर दिल के खतरे का अंदाजा लगाने के लिए उम्र, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, स्मोकिंग जैसी चीजों पर आधारित रिस्क कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते हैं। यूरोप में SCORE2 नाम का मॉडल 10 साल में हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बताने के लिए इस्तेमाल होता है। लेकिन नई रिसर्च बता रही है कि सिर्फ इन पुराने पैमानों पर भरोसा करने से कई ऐसे लोग छूट जाते हैं, जिन्हें आगे चलकर दिल की बीमारी हो सकती है।
अब स्क्रीनिंग कम उम्र के लोगों में भी हो रही है, जिनकी उम्र लंबी होने की संभावना है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम शरीर के अंदर चल रही गहरी जैविक जानकारी (biological information) का इस्तेमाल करके खतरे को और सही तरीके से पहचान सकते हैं? नई स्टडी कहती है हां, बिल्कुल।
इस रिसर्च में UK Biobank के करीब 3 लाख लोगों का डेटा देखा गया, जिनकी उम्र 40 से 69 साल थी और जिन्हें शुरुआत में दिल की बीमारी, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल की दवा नहीं थी। करीब 9 हजार लोगों को फॉलो-अप के दौरान दिल से जुड़ी घटनाएं (हार्ट अटैक, स्ट्रोक) हुईं।
सिर्फ SCORE2 मॉडल से रिस्क पहचानने की क्षमता एक तय स्तर तक ही रही। जब इसमें 11 क्लिनिकल बायोमार्कर जोड़े गए (जैसे cystatin C, Lp(a), CRP, vitamin D), तो पहचान थोड़ी और बेहतर हुई। शरीर में सूजन और मेटाबोलिज्म से जुड़े खास टेस्ट (metabolomics) जोड़ने से फायदा और बढ़ा। जेनेटिक रिस्क स्कोर (यानि जीन के आधार पर दिल की बीमारी का खतरा) जोड़ने से भविष्यवाणी और मजबूत हुई। जब इन तीनों बायोमार्कर, मेटाबोलोमिक्स और जेनेटिक्स को एक साथ जोड़ा गया, तो दिल की बीमारी के खतरे को पहचानने की क्षमता सबसे ज्यादा बेहतर हुई। इससे सही लोगों को “हाई रिस्क” कैटेगरी में डालना आसान हो गया।
इसका सीधा मतलब है कि आने वाले समय में दिल की बीमारी की पहचान सिर्फ कोलेस्ट्रॉल तक सीमित नहीं रहेगी।
अगर डॉक्टरों के पास शरीर की सूजन, किडनी फंक्शन, जेनेटिक रिस्क जैसी अतिरिक्त जानकारी होगी, तो वे पहले ही तय कर पाएंगे कि किसे ज्यादा ध्यान और इलाज की जरूरत है।
रिसर्च के मुताबिक, अगर यह तरीका अपनाया जाए तो 1 लाख लोगों की स्क्रीनिंग में पहले से ज्यादा हार्ट अटैक और स्ट्रोक रोके जा सकते हैं, वो भी बिना बेवजह ज्यादा दवाएं दिए। हालांकि, इसे रोजमर्रा की मेडिकल प्रैक्टिस में लाने से पहले लागत, उपलब्धता और आसान इस्तेमाल जैसे सवालों पर काम करना जरूरी है। फिर भी, यह साफ है कि दिल की सेहत को बचाने के लिए भविष्य ज्यादा पर्सनल और ज्यादा सटीक होने वाला है।
Published on:
26 Dec 2025 09:33 am
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