डॉ. केवल कृष्ण ने बताया कि मरीज गंभीर कार्डियोजेनिक शॉक के कारण हार्ट फेल्योर के अंतिम चरण में पहुंच चुका था इसलिए उन्हें दिल का प्रत्यारोपण करने की सख्त जरूरत थी। लेकिन दिल का दान करने वाला कोई नहीं मिल रहा था इसलिए लक्ष्य—केंद्रित उपचार के तौर पर एक लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस प्रत्यारोपित करने का फैसला किया गया। बिना किसी गड़बड़ी के यह प्रक्रिया पूरी हो गई जबकि वी-ए ईसीएमओ सपोर्ट को हटा लिया गया और एलवीएडी प्रत्यारोपित कर दिया गया। इस जटिल प्रक्रिया के लिए ऑपरेशन के बाद भी मरीज को आईसीयू और अस्पताल में रखे जाने की अवधि उम्मीद के अनुरूप रही और इसके बाद उन्हें सामान्य स्थिति में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अब मरीज पूरी तरह स्वस्थ है।
डॉ. केवल कृष्ण ने बताया कि दिल की बीमारी के ज्यादातर मामले शुरुआती चरण में पकड़ में नहीं आते हैं जिस कारण हृदय की गतिविधि बिगड़ती चली जाती है और अंत में यही हार्ट फेल्योर का कारण बनता है। कई मरीजों को बार-बार दिल का दौरा पड़ता है और डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी के ऐसे मरीजों को एडवांस्ड हार्ट फेल्योर का खतरा अधिक रहता है। ऐसे मामलों में दिल का प्रत्यारोपण करने का ही विकल्प बचता है जबकि डोनर नहीं मिल पाने के कारण ऐसे 70 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। ऐसे हालात में एलवीएडी उन मरीजों के लिए वरदान साबित हुआ है और इससे कई लोगों की जान बच पाई है।