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हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंच चुके मरीज की कृत्रिम हृदय से बचाई जान

locationजयपुरPublished: Aug 27, 2020 07:46:52 pm

Submitted by:

Hemant Pandey

मरीज को दिल का दौरा पड़ चुका था और पहले बायपास सर्जरी भी हुई थी। हिमोडायनामिक गड़बड़ी के कारण गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया मरीज।

Case History- हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंच चुके मरीज की कृत्रिम हृदय से बचाई जान

Case History- हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंच चुके मरीज की कृत्रिम हृदय से बचाई जान

हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंच चुके जयपुर के 58 वर्षीय मरीज को नई दिल्ली के एक हॉस्पिटल में नई जिंदगी मिल गई है। मरीज को पोस्ट कार्डियोटोमी शॉक की शिकायत के कारण हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
कार्डियक सर्जन और हार्ट ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. केवल कृष्ण (मैक्स हॉस्पिटल) ने बताया, ‘मरीज को गंभीर स्थिति में भर्ती कराया गया था और लंबे समय तक वेंटिलेटर सपोर्ट मिलने के बाद भी उनका ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो गया था। इसलिए उन्हें तत्काल वेनो आर्टेरियल एक्सट्राकॉर्पोरियल में ब्रेन ऑक्सीजेनेशन सपोर्ट पर रखा गया। लगातार निगरानी में रखने के बाद उनका ईको शरीर की आवश्यकता के अनुरूप हो पाया। लेकिन उनकी हिमोडायनामिक्स की गंभीर स्थिति को देखते हुए ईसीएमओ का पूर्ण संचार बहाल करने के लिए सात दिन बाद ईको को हटाकर देखने की प्रक्रिया अपनाई गई। कई बार यह प्रयास विफल हो जाने के बाद डॉक्टरों की टीम ने ईसीएमओ जारी रखने का फैसला किया।’ हालांकि ईसीएमओ फेफड़े या हृदयगति रुक जाने की गंभीर स्थिति में ही दी जाती है।
डॉ. केवल कृष्ण ने बताया कि मरीज गंभीर कार्डियोजेनिक शॉक के कारण हार्ट फेल्योर के अंतिम चरण में पहुंच चुका था इसलिए उन्हें दिल का प्रत्यारोपण करने की सख्त जरूरत थी। लेकिन दिल का दान करने वाला कोई नहीं मिल रहा था इसलिए लक्ष्य—केंद्रित उपचार के तौर पर एक लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस प्रत्यारोपित करने का फैसला किया गया। बिना किसी गड़बड़ी के यह प्रक्रिया पूरी हो गई जबकि वी-ए ईसीएमओ सपोर्ट को हटा लिया गया और एलवीएडी प्रत्यारोपित कर दिया गया। इस जटिल प्रक्रिया के लिए ऑपरेशन के बाद भी मरीज को आईसीयू और अस्पताल में रखे जाने की अवधि उम्मीद के अनुरूप रही और इसके बाद उन्हें सामान्य स्थिति में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अब मरीज पूरी तरह स्वस्थ है।
डॉ. केवल कृष्ण ने बताया कि दिल की बीमारी के ज्यादातर मामले शुरुआती चरण में पकड़ में नहीं आते हैं जिस कारण हृदय की गतिविधि बिगड़ती चली जाती है और अंत में यही हार्ट फेल्योर का कारण बनता है। कई मरीजों को बार-बार दिल का दौरा पड़ता है और डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी के ऐसे मरीजों को एडवांस्ड हार्ट फेल्योर का खतरा अधिक रहता है। ऐसे मामलों में दिल का प्रत्यारोपण करने का ही विकल्प बचता है जबकि डोनर नहीं मिल पाने के कारण ऐसे 70 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। ऐसे हालात में एलवीएडी उन मरीजों के लिए वरदान साबित हुआ है और इससे कई लोगों की जान बच पाई है।
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