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Youth Mental Problem: युवाओं में भी मानसिक परेशानी, इसे स्वीकारें और मदद लें

locationजयपुरPublished: Aug 12, 2020 01:49:28 pm

Submitted by:

Hemant Pandey

युवाओं के जीवन में कई बदलाव हुए हैं। कोविड भले स्थाई नहीं है पर इससे हर वर्ग प्रभावित है। युवाओं को न पढ़ाई, कॅरियर, निजी जीवन व दूसरी जिम्मेदारियां भी हैं। ऐसे में उनमें मानसिक समस्याएं बढ़ी हैं।

Youth Mental Problem: युवाओं में भी मानसिक परेशानी, इसे स्वीकारें और मदद लें

Youth Mental Problem: युवाओं में भी मानसिक परेशानी, इसे स्वीकारें और मदद लें

युवा ज्यादा ग्रसित क्यों?
कोरोना से पहले सब सामान्य था, मिलकर समस्या का समाधान होता था। अब युवा अपनी बातें साझा नहीं कर पा रहे हंै। परीक्षाएं स्थगित हो रही, नौकरियां छिन रही, फाइनेंशियल समस्या बढ़ी है, अगर जॉब है घर से काम करने की अपनी दिक्कतें हैं। पति-पत्नी दोनों जॉब में वहां भी परेशानी ज्यादा है। ïघर में नशा नहीं कर पाना आदि कारण हैं।
दो सप्ताह से ज्यादा दिन…
ïघबराहट, बेचैनी, दिनभर सोचना, रात में डरावने सपने आना, चिखना-चिल्लाना, नुकसान पहुंचाने की प्रवृति, आत्महत्या के विचार आदि लक्षण दो सप्ताह से अधिक दिन से हैं तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
तनाव का शरीर पर असर
य दि हल्का स्ट्रेस है तो इससे प्रोत्साहन मिलता है लेकिन ज्यादा होने से घबराहट होती, ऊर्जा की कमी होती है। इसका असर शरीर, दिमाग, भावनाओं-व्यवहार पर भी पड़ता है।
शरीर पर असर : बार-बार सिरदर्द, इम्युनिटी कम होती है, थकान और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव होता है।
भावनात्मक असर : चिंता, गुस्सा, डर, चिड़चिड़पना, उदासी, उलझन होती है।
दिमाग पर असर : बार-बार बुरे सपने, खयाल मसलन मुझे कोरोना हो गया, मर गया या फिर नौकरी चली गई तो क्या होगा। सही और गलत में अंतर न कर पाना।
व्यवहार पर असर : नशा करना, टीवी अधिक देखना, चुप्पी, चिखना-चिल्लाना।
पर्सनल-प्रोफेशनल में अंतर रखें…
नई-नई चीजें सीखें। क्रिएटिव रहें। रुटीन अच्छा रखें। घर से काम कर रहे हैं तो पर्सनल और प्रोफेशल लाइफ में अंतर रखें। कोई मानसिक समस्या होती है तो भारत सरकार की तरफ से कई ऑनलाइन फ्री सुविधा उपलब्ध है। वहां से कॉउंसलिंग करवा सकते हैं।
ऐसे करें बचाव…
जो आप कर सकते हैं वो करते रहें। जो नहीं कर सकते हैं उसे स्वीकारें। जैसे कोरोना की वैक्सीन नहीं बना सकते हैं तो परेशान न हो। लेकिन तनाव-अवसाद है तो उसे दबाएं नहीं। बाहर आने दें। अपनों को बताएं या लिखें, ताकि मदद मिले। फिजिकल डिस्टेंसिंग रखें, सोशली बनें। वीडियो कॉल से बातें करें। भावनाओं को अच्छे से व्यक्त होने दें।
वंदना चौधरी, मनोवैज्ञानिक, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज
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