Fatty Liver in Children : लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) ने 'ग्लोबल फैटी लीवर डे' पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें बच्चों में फैटी लीवर रोग (Fatty Liver Disease in Children) के बढ़ते मामलों पर प्रकाश डाला गया. इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में लगभग 17% बच्चे फैटी लीवर की समस्या से जूझ रहे हैं, और चौंकाने वाली बात यह है कि मोटे बच्चों में यह आंकड़ा 70-75% तक पहुंच जाता है. यह वाकई एक गंभीर स्थिति है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.
फैटी लीवर (Fatty Liver) का मतलब है लीवर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाना. आमतौर पर लीवर में थोड़ी मात्रा में वसा होती है, लेकिन जब यह बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तो यह लीवर को नुकसान पहुंचाना शुरू कर सकती है. KGMU के विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में फैटी लीवर के मुख्य कारण हैं:
जंक फूड और मीठे उत्पादों का अधिक सेवन: आजकल बच्चे पिज्जा, बर्गर, चिप्स, कैंडी, कोल्ड ड्रिंक और अन्य प्रोसेस्ड फूड बहुत खाते हैं. इनमें चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो लीवर में वसा जमा होने का कारण बनती है.
कम शारीरिक गतिविधि: बच्चे अब बाहर खेलने-कूदने के बजाय घर पर वीडियो गेम, टीवी या मोबाइल पर ज्यादा समय बिताते हैं. शारीरिक गतिविधि कम होने से कैलोरी बर्न नहीं होती और मोटापा बढ़ता है, जो फैटी लीवर को बढ़ावा देता है.
सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन: सॉफ्ट ड्रिंक में बहुत अधिक चीनी होती है, जो लीवर पर सीधा नकारात्मक प्रभाव डालती है.
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KGMU के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के एचओडी, प्रोफेसर सुमित रुंगटा ने जोर देकर कहा कि बच्चों को फैटी लीवर से बचाना घर से ही शुरू होता है. उनके अनुसार, जागरूक माता-पिता, पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम और समय-समय पर जांच बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए बहुत जरूरी हैं. उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी हम इस पर ध्यान देंगे, हमारी आने वाली पीढ़ी उतनी ही स्वस्थ होगी. उनका मानना है कि जीवनशैली में बदलाव लाकर इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.
लीवर विशेषज्ञ डॉ. अनन्य गुप्ता ने बताया कि फैटी लीवर रोग (Fatty Liver Disease) को शुरुआत में ही पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है. नियमित जांच से इसका जल्दी पता चल सकता है और समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि वजन कम करना, खान-पान में बदलाव और शारीरिक गतिविधि बढ़ाना फैटी लीवर को ठीक करने में मदद कर सकता है, खासकर यदि इसका पता शुरुआती चरणों में चल जाए.
डॉ. गुप्ता ने यह भी बताया कि बच्चों में फैटी लीवर रोग (Fatty Liver Disease) के शुरुआती चरणों में अक्सर कोई लक्षण नहीं दिखते. यही कारण है कि यह बीमारी अक्सर तब तक पता नहीं चलती है जब तक कि यह गंभीर जटिलताएं पैदा न कर दे. इसलिए, माता-पिता को बच्चों के खान-पान और शारीरिक गतिविधि पर विशेष ध्यान देना चाहिए, भले ही बच्चा बीमार न लगे.
विभाग के एक अन्य फैकल्टी सदस्य, डॉ. श्रीकांत कोठलकर ने लीवर से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए मेडिकल देखभाल, सार्वजनिक शिक्षा और सामुदायिक प्रयासों के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम जागरूकता फैलाने और परिवारों को व्यावहारिक जानकारी प्रदान करने के अवसर पैदा करते हैं. इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ वार्ता, इंटरैक्टिव कार्यशालाएं और एक मुफ्त लीवर स्क्रीनिंग कैंप शामिल था. इन सत्रों में बच्चों और किशोरों के लिए उपयुक्त आहार, व्यायाम दिनचर्या और लीवर से संबंधित समस्याओं के शुरुआती चेतावनी संकेतों पर मार्गदर्शन दिया गया.
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग (NAFLD) के कई मामलों में ध्यान देने योग्य लक्षण नहीं होते, जिससे नियमित जांच और शुरुआती जीवनशैली में बदलाव प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
कुल मिलाकर, यह साफ है कि बच्चों में फैटी लीवर एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है. माता-पिता के रूप में, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को स्वस्थ खान-पान और सक्रिय जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करें, ताकि वे इस गंभीर बीमारी से बच सकें.
Published on:
13 Jun 2025 11:04 am