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Monkey Fever Vaccine : मंकी फीवर से लड़ाई में भारत की बड़ी उपलब्धि, पहला स्वदेशी टीका तैयार

India First Indigenous Monkey Fever Vaccine भारत ने क्यासानुर फॉरेस्ट डिजीज़ (KFD), जिसे मंकी फीवर के नाम से जाना जाता है।

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भारत

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Manoj Vashisth

Feb 17, 2025

India First Indigenous Monkey Fever Vaccine A Milestone in Healthcare

India First Indigenous Monkey Fever Vaccine A Milestone in Healthcare

Monkey Fever Vaccine : भारत ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए क्यासानुर फॉरेस्ट डिजीज़ (KFD), जिसे मंकी फीवर के नाम से भी जाना जाता है, के लिए अपना पहला स्वदेशी वैक्सीन (Monkey Fever Vaccine) विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। यह वैक्सीन न केवल इस गंभीर बीमारी से बचाव में मदद करेगी बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता को भी मजबूत करेगी।

क्या है मंकी फीवर (KFD)? What is Monkey Fever (KFD)?

मंकी फीवर, क्यासानुर फॉरेस्ट डिजीज़ (KFD) एक वायरल संक्रमण है, जो KFDV (Kyasanur Forest Disease Virus) के कारण होता है। यह बीमारी मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गोवा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। यह बीमारी संक्रमित किलनी (Ticks) के काटने से फैलती है और इससे तेज बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और गंभीर मामलों में रक्तस्राव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

आपको बता दें कि कर्नाटक सरकार ने क्यासानुर फॉरेस्ट डिजीज़ (KFD), जिसे मंकी फीवर के नाम से भी जाना जाता है, से प्रभावित सभी मरीजों के लिए मुफ्त इलाज की घोषणा की है। पहले यह सुविधा केवल गरीबी रेखा से नीचे (BPL) आने वाले परिवारों को ही दी जाती थी, लेकिन अब इसे आर्थिक रूप से संपन्न (APL) परिवारों के लिए भी बढ़ा दिया गया है।

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Monkey Fever : तेजी से फैलती बीमारी

मंकी फीवर एक टिक-जनित वायरल रक्तस्रावी (Haemorrhagic) बीमारी है, जो मुख्य रूप से कर्नाटक के मलनाड, तटीय क्षेत्रों और पश्चिमी घाट से सटे राज्यों में फैल रही है। यह फ्लैविवायरस (Flavivirus) के कारण होता है और संक्रमित किलनी (Ticks) के काटने से इंसानों में फैलता है।

मृत्यु दर:

मंकी फीवर की मृत्यु दर 3% से 15% के बीच है, जो डेंगू (2.6%) की तुलना में काफी अधिक है।
देरी से इलाज होने पर मल्टी-ऑर्गन फेल्योर (एक से अधिक अंगों का काम करना बंद कर देना) के कारण मृत्यु हो सकती है।

भारत का पहला स्वदेशी KFD वैक्सीन: क्यों है यह महत्वपूर्ण?

स्थानीय ज़रूरतों के अनुसार विकसित – अब तक भारत को इस बीमारी से बचाव के लिए आयातित टीकों पर निर्भर रहना पड़ता था। स्वदेशी वैक्सीन के विकास से यह निर्भरता कम होगी।

प्रभावी सुरक्षा कवच – यह वैक्सीन स्थानीय रूप से उत्पन्न वायरस स्ट्रेन के अनुसार बनाई जा रही है, जिससे यह अधिक प्रभावी होगी।
टीकाकरण से संक्रमण पर रोक – इस वैक्सीन के आने से मंकी फीवर के मामलों में भारी कमी लाने में मदद मिलेगी, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है।

Monkey Fever Vaccine : वैक्सीन विकास में भारत की भूमिका

भारत में इस वैक्सीन को विकसित करने के लिए कई शोध संस्थान और वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) मिलकर इस परियोजना पर काम कर रहे हैं।

कब तक उपलब्ध होगी यह वैक्सीन?

रिपोर्ट्स के अनुसार, वैक्सीन के शुरुआती परीक्षण सफल रहे हैं और जल्द ही यह आम जनता के लिए उपलब्ध कराई जाएगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि सब कुछ योजना के अनुसार चला तो अगले कुछ महीनों में यह वैक्सीन आम लोगों के लिए तैयार हो सकती है।

भारत का पहला स्वदेशी मंकी फीवर वैक्सीन देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। इससे न केवल लोगों को सुरक्षित किया जा सकेगा, बल्कि भविष्य में अन्य वायरल बीमारियों के लिए भी स्वदेशी टीकों के विकास को प्रेरणा मिलेगी। यह कदम भारत की आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक उन्नति की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है।

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