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इस हार्मोन का लेवल गड़बड़ाने से भी आ सकती है गर्भधारण में परेशानी

गर्भधारण में आने वाली दिक्कतों से जुड़े कारणों में ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है।

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Vikas Gupta

Oct 02, 2017

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गर्भधारण में आने वाली दिक्कतों से जुड़े कारणों में ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है।

एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए शरीर में हार्मोन्स का संतुलित होना जरूरी है। खानपान के बदलते तौर-तरीके और रहन-सहन की गलत आदतों से सबसे पहले शरीर के विभिन्न हार्मोन असंतुलित होने लगते हैं। एंटी मुलेरियन हार्मोन (एएमएच) महिलाओं के शरीर में पाया जाने वाला जरूरी हार्मोन है। गर्भधारण में आने वाली दिक्कतों से जुड़े कारणों में ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है। जानें इसके बारे में...

कम स्तर, इंफर्टिलिटी का कारण
यह हार्मोन अंडाशय में बनता है। इसका स्तर यहां पर अंडाणुओं के प्रवाह को प्रभावित करता है। ऐसे में स्तर कम होना इंफर्टिलिटी (बांझपन) का एक कारण हो सकता है। महिलाओं के रक्त में इस हार्मोन का स्तर आमतौर पर उनके अच्छे ओवेरियन रिजर्व यानी अंडाशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में फर्टिलाइज होने लायक एग सेल्स उपलब्ध कराने का संकेत है। यह हार्मोन छोटे विकसित फॉलिकल्स के जरिए बनता है।

इसलिए टैस्ट जरूरी
तेजी से बदलती जीवनशैली के कारण शरीर में होने वाले बदलाव समय से पहले होने लगे हैं। इस कारण महिलाओं में ओवेरियन रिजर्व समय से पहले घट या कम हो जाता है। ऐसे में एएमएच टैस्ट अंडाशय की कार्यप्रणाली को गहराई से जानने व मेनोपॉज की शुरुआत (४५ की उम्र के आसपास) के बारे में बताता है। खासकर 20-25 साल की उम्र के दौरान, जब इसकी गुणवत्ता अच्छी होती है।

इस कारण होती कमी
उम्र बढऩे के साथ महिलाओं के अंडाशय में अंडों की कमी होने लगती है। ऐसा शरीर में पोषण तत्त्वों की कमी से होता है। खराब गुणवत्ता वाला भोजन करने, रक्तसंचार बेहतर न होने, असंतुलित हार्मोन व अन्य सेहत संबंधी समस्याओं के कारण भी महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पातीं। इसके लिए सही खानपान लेने व तनाव न लेने की सलाह देते हैं। डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल और अंकुरित अनाज शामिल करें। खासकर कैल्शियम व आयरन की कमी को पूरा करने के लिए पालक व दूध उत्पाद लें।

हार्मोन का बनना
शिशु के विकास से लेकर जन्म लेने तक यह हार्मोन जरूरी है। इसका सही स्तर महिला की जीवनशैली पर निर्भर करता है। मासिक चक्र के हिसाब से हार्मोन का स्तर घटता-बढ़ता रहता है। हालांकि एंटी मुलेरियन हार्मोन के विकास की दर एक गति से होती है। गर्भधारण के समय एएमएच के साथ एफएसएच व एस्ट्रोडिल प्रमुख जांचें भी होती हैं। जिनसे गर्भाशय की स्थिति व गर्भस्थ शिशु के विकास की जानकारी मिलती है। इसके आधार पर इलाज तय होता है।