
हम सबकी जिंदगी में रोजाना ही कुछ मसले ऐसे आते हैं, जब हमें पता नहीं चलता कि उन पर क्या फैसला लिया जाए। हमारा कौनसा निर्णय सही होगा। दिमाग जिसे सही मानता है दिल उसे खारिज कर देता है और इन सबमें हम कोई ऐसा फैसला कर लेते हैं जिसके बाद में हमें पछताना पड़ता है। सोचते हैं कि काश उस समय दिमाग की मान ली होती या काश दिल की सुन लेते। वैज्ञानिकों की मानें तो इन सब जद्दोजहद के लिए असल में हम नहीं बल्कि हमारे पास मौजूद ढेर सारे विकल्प पूरी तरह से जिम्मेद्दार हैं, जो दिमाग के अंदर परस्पर विरोधाभास पैदा करते हैं।
Published on:
06 May 2016 11:51 am
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