
Scientists Crack Code of Human Color Superiority
पेट्री डिश में उगाई गई आंखों की पुतलियों (रेटिना) के जरिए वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला रहस्य सुलझाया है - कैसे विटामिन A का एक रूप रंग-संवेदी कोशिकाओं का निर्माण करता है, जिससे हम लाखों रंग देख पाते हैं, जबकि कुत्ते और बिल्लियाँ ऐसा नहीं कर पाते.
यह खोज, PLOS Biology नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है, जो रंग-अंधता, उम्र से संबंधित दृष्टि हानि और फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं से जुड़े अन्य रोगों को समझने में मददगार साबित होगी. अध्ययन यह भी बताता है कि कैसे जीन मानव रेटिना को विशिष्ट रंग-संवेदी कोशिकाएं बनाने का निर्देश देते हैं, एक प्रक्रिया जिसे पहले थायरॉयड हार्मोन द्वारा नियंत्रित माना जाता था.
"इन रेटिनल ऑर्गेनॉयड्स ने हमें पहली बार इस विशिष्ट मानवीय विशेषता का अध्ययन करने का मौका दिया," जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर रॉबर्ट जॉनस्टन कहते हैं. "यह इस सवाल का एक बड़ा हिस्सा है कि क्या हमें इंसान बनाता है, क्या हमें अलग बनाता है."
कोशिकाओं के गुणों को बदलकर, शोधकर्ताओं ने पाया कि रेटिनोइक एसिड नामक एक अणु यह निर्धारित करता है कि क्या एक शंकु कोशिका लाल या हरे प्रकाश को महसूस करने में विशेषज्ञता हासिल करेगी. सामान्य दृष्टि वाले केवल मनुष्य और निकट संबंधी प्राइमेट ही लाल संवेदक विकसित करते हैं.
टीम ने पाया कि ऑर्गेनॉयड्स के शुरुआती विकास में रेटिनोइक एसिड के उच्च स्तर हरे रंग के शंकु कोशिकाओं के अधिक अनुपात से जुड़े थे. इसी तरह, एसिड के निम्न स्तर ने रेटिना के आनुवंशिक निर्देशों को बदल दिया और बाद में विकास में लाल शंकु कोशिकाओं को जन्म दिया.
"शायद इसमें अभी भी कुछ यादृच्छिकता हो, लेकिन हमारा बड़ा निष्कर्ष यह है कि आप विकास के शुरुआती चरण में ही रेटिनोइक एसिड बनाते हैं," जॉनस्टन कहते हैं. "यह समय वास्तव में यह सीखने और समझने के लिए मायने रखता है कि ये शंकु कोशिकाएं कैसे बनती हैं."
हरे और लाल शंकु कोशिकाएं एक प्रोटीन ओप्सिन को छोड़कर काफी हद तक समान हैं, जो प्रकाश का पता लगाता है और मस्तिष्क को बताता है कि लोग कौन से रंग देखते हैं.
"क्योंकि हम ऑर्गेनॉयड्स में हरे और लाल कोशिकाओं की आबादी को नियंत्रित कर सकते हैं, हम पूल को अधिक हरा या अधिक लाल बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं," डॉक्टरल छात्र के रूप में जॉनस्टन की प्रयोगशाला में शोध करने वाली और अब ड्यूक यूनिवर्सिटी में कार्यरत सारा हैडिनियाक कहती हैं.
वैज्ञानिक अभी भी पूरी तरह से नहीं समझते हैं कि हरे और लाल शंकु कोशिकाओं का अनुपात किसी के दृष्टि को प्रभावित किए बिना इतना भिन्न क्यों हो सकता है.
जॉनस्टन कहते हैं, "अगर इस तरह की कोशिकाएं मानव हाथ की लंबाई निर्धारित करती हैं, तो अलग-अलग अनुपात 'आश्चर्यजनक रूप से अलग' हाथ की लंबाई पैदा करेंगे."
मैकुलर डिजनरेशन जैसे रोगों की समझ बनाने के लिए, शोधकर्ता जॉन्स हॉपकिन्स के अन्य प्रयोगशालाओं के साथ काम कर रहे हैं. उनका लक्ष्य यह समझना है कि शंकु और अन्य कोशिकाएं तंत्रिका तंत्र से कैसे जुड़ती हैं.
(आईएएनएस)
Updated on:
13 Jan 2024 11:54 am
Published on:
13 Jan 2024 11:52 am
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