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Superbug Threat to Newborns : एंटीबायोटिक्स हो रहे बेअसर! नवजातों पर ‘सुपरबग’ का हमला, जानिए खतरा कितना बड़ा हो सकता है

Superbug Newborns Antibiotic Resistance AMR Sepsis Study : दक्षिण पूर्व एशिया में हुए शोध में खुलासा – नवजात शिशुओं में संक्रमण रोकने वाली एंटीबायोटिक दवाएं अब असर नहीं कर रहीं। WHO की सिफारिशें भी नाकाम, सुपरबग से बढ़ रही शिशु मृत्यु दर चिंता का विषय।

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भारत

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Manoj Vashisth

Oct 13, 2025

Superbug Threat to Newborns

Superbug Threat to Newborns : एंटीबायोटिक दवाएं हो रही बेअसर, बढ़ा खतरा (फोटो सोर्स: AI image@Gemini)

Superbug Threat to Newborns : जरा सोचिए, एक नवजात शिशु जिसने अभी दुनिया में कदम ही रखा ह उस पर जानलेवा बैक्टीरिया हमला कर दे और उसे बचाने वाली दवा ही काम करना बंद कर दे? यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि आज दुनिया के कई हिस्सों, खासकर दक्षिण पूर्व एशिया में स्वास्थ्य सेवाओं के सामने खड़ा एक डरावना सच है।

एक हालिया शोध ने खतरे की यह घंटी बजाई है। यह रिसर्च श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और फिलीपींस के 10 अस्पतालों में की गई, जहां 2019 और 2020 के दौरान लगभग 15,000 बीमार शिशुओं के रक्त नमूनों का विश्लेषण किया गया। 'लांसेट रीजनल हेल्थ – वेस्टर्न पैसिफिक' में प्रकाशित इन निष्कर्षों ने बताया कि नवजात शिशुओं में होने वाले जानलेवा संक्रमण 'सेप्सिस' के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) की दर खतरनाक रूप से बढ़ गई है।

Gram-Negative बैक्टीरिया का कहर: WHO की दवाएं भी फेल

शोध में पता चला कि लगभग 80 प्रतिशत संक्रमण ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया (Gram-negative bacteria) के कारण हो रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से ई. कोली (E. coli), क्लेबसिएला (Klebsiella) और एसीनेटोबैक्टर (Acinetobacter) शामिल हैं। यह जानकारी बहुत चिंताजनक है क्योंकि ये बैक्टीरिया अपनी बाहरी दीवार की संरचना के कारण स्वाभाविक रूप से कई एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।

सबसे बड़ी परेशानी यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा नवजात सेप्सिस के इलाज के लिए जिन फर्स्ट-लाइन एंटीबायोटिक्स की सिफारिश की गई है, ये बैक्टीरिया उनके लिए भी 'नॉन-ससेप्टिबल' (बेअसर) पाए गए हैं। इसका सीधा मतलब है कि प्राथमिक उपचार विफल हो रहा है, और डॉक्टरों को मजबूरन दूसरी या तीसरी पंक्ति की महंगी और कभी-कभी प्रायोगिक (experimental) दवाओं का सहारा लेना पड़ रहा है।

भारत में भी गंभीर स्थिति

  • यह समस्या केवल दक्षिण पूर्व एशिया तक सीमित नहीं है। भारत भी एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) के सबसे बड़े बोझ वाले देशों में से एक है।
  • एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सेप्सिस के कारण नवजात शिशुओं की होने वाली 30 प्रतिशत से अधिक मौतों के लिए AMR जिम्मेदार है।
  • देश के अस्पतालों में भी मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट (MDR) जीवाणुओं का संक्रमण शिशुओं में सेप्सिस का एक बड़ा कारण बन रहा है।
  • शोध बताते हैं कि भारत में प्रति वर्ष 60,000 से अधिक नवजात शिशु प्रतिजैविक-प्रतिरोधी संक्रमण से मारे जाते हैं, जो AMR की उच्च संवेदनशीलता को दर्शाता है।
  • WHO ने AMR को मानवता के सामने आने वाले शीर्ष 10 वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक बताया है।

क्यों हैं नवजात सबसे बड़े शिकार?

शिशु जीवन के पहले 28 दिनों में संक्रमण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनका प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता। ऐसे में, जब संक्रमण प्रतिरोधी बैक्टीरिया से होता है, तो त्वरित और प्रभावी इलाज ही एकमात्र आशा होती है। यदि इलाज में देरी होती है या दवा काम नहीं करती, तो मृत्यु दर तेज़ी से बढ़ जाती है।

यहां तक कि फंगल संक्रमण भी एक चिंता का विषय है, जो अध्ययन में लगभग 10 प्रतिशत मामलों में पाया गया। यह दर उच्च-आय वाले देशों की तुलना में काफी अधिक है।

समाधान की धीमी रफ्तार: 10 साल का इंतजार

विशेष रूप से शिशुओं के लिए एंटीबायोटिक विकसित करना एक धीमी और जटिल प्रक्रिया है। अध्ययन में कहा गया है कि नवजात शिशुओं में उपयोग के लिए किसी नई दवा का परीक्षण और अनुमोदन होने में आमतौर पर लगभग 10 साल लगते हैं। यह देरी, बाल चिकित्सा एंटीबायोटिक दवाओं में सीमित अनुसंधान निवेश के साथ मिलकर, उपलब्ध उपचारों में एक महत्वपूर्ण अंतर पैदा करती है। विशेषज्ञ सरकारों और दवा कंपनियों से नवजात शिशुओं के लिए उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाओं के विकास को प्राथमिकता देने का आग्रह करते हैं।

अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर प्रभाव

अस्पतालों को नवजात शिशुओं में रोगाणुरोधी-प्रतिरोधी संक्रमणों के बढ़ते बोझ का सामना करना पड़ रहा है। सुपरबग के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी संक्रमण नियंत्रण उपाय, एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम और त्वरित निदान परीक्षण आवश्यक हैं। इन उपायों के बिना, पिछले दशकों में नवजात मृत्यु दर को कम करने में हुई प्रगति उलट सकती है।