सिद्धा में 3 तरह से इलाज, योग व शोधन भी आजमाते
जयपुरPublished: Jan 03, 2021 02:24:18 pm
सिद्धा चिकित्सा पद्धित की शुरुआत तमिलनाडु से हुई। देशभर में स्वीकार्यता के साथ कई देशों में फैल गई है।
सिद्धा में 3 तरह से इलाज, योग व शोधन भी आजमाते
सिद्धा चिकित्सा पद्धित की शुरुआत तमिलनाडु से हुई। देशभर में स्वीकार्यता के साथ कई देशों में फैल गई है। आयुर्वेद की तरह इसमें भी मरीजों का इलाज जड़ी-बूटियों से किया जाता है। करीब चार हजार साल पहले से अस्तित्व में आई पद्धित को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार सिद्धा दिवस मानती है। इस बार 2 जनवरी को यह दिवस मनाया गया।
बीमारियों की पहचान आठ तरीकों से होती है
आयुर्वेद की तरह सिद्धा में भी वात, पित्त और कफ त्रिदोष को बीमारियों का कारण माना गया है। बीमारियों की पहचान के लिए आठ तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें नाड़ी (पल्स की जांच), स्पर्शम (त्वचा को छूकर), ना (जीभ का रंग देखकर), निरम (त्वचा का रंग देखकर), मोझी (आवाज से), विझी (आंख देखकर), मूथरम (यूरिन का रंग देखकर) और मलम (स्टूल का रंग देखकर) शामिल है।
आयुर्वेद से यह अंतर
इसकी दवाइयां बनने के तत्काल बाद ही मरीज दे दी जाती है। देरी से देने पर दवा असर नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवा तैयार होने के बाद लंबे समय तक उपयोग में ली सकती है।
आयुर्वेद में ज्यादा जोर रोगों से बचाव पर रहता है और योग उसका श्रेष्ठ उपाय है। सिद्धा में इलाज के दौरान भी मरीज को जरूरी योग कराया जाता है ताकि दवा का असर ज्यादा हो सके।
देवा, मनीदा, असुरा तरीके से इलाज
इस पद्धति में इलाज के लिए शरीर को सात हिस्सों में बांटा जाता है। इनमें चेनीर (ब्लड), उऊं (मांसपेशियां), कोल्लजुप्पु (फैटी टिश्यू), एन्बू (हड्डी), मूलाय (नर्वस), सरम (प्लाज्मा), सुकिला (स्पर्म) होता है। वहीं इलाज के लिए तीन तरीके होते हैं। इनमें देवा (दैवीय), मनीदा (मानव) और असुरा (सर्जरी) मुरुथुवम है। देवा में सल्फर या मर्करी से बनी एक ही दवा दी जाती है जबकि मनीदा में कई प्रकार की दवाइयां दी जाती हैं। वहीं असुरा यानी सर्जरी में चीरा, टांके, जोंक थैरेपी और खून का शोधन किया जाता है।