
Womens Day Special Dr Muthulakshmi Reddy Indias First Woman Surgeon Who Gave Cancer Patients a New Life
Women's Day 2025 : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज हम एक ऐसी असाधारण महिला की बात कर रहे हैं जिसने रूढ़ियों की दीवारें तोड़ दी। जी हां, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, एक ऐसा नाम जो साहस, संकल्प और समाज सेवा का पर्याय है। वह एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने (Dr Muthulakshmi Reddy) न केवल अपने सपनों को साकार किया बल्कि लाखों महिलाओं के जीवन में आशा की किरण जगाई। उन्होंने उस समय में शिक्षा प्राप्त की जब लड़कियों का स्कूल जाना भी दुर्लभ था। उन्होंने उन क्षेत्रों में कदम रखा जहां पुरुषों का एकाधिकार था, और अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर दिया।
डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr Muthulakshmi Reddy) का नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। 1886 में तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास) के पुडुकोट्टई में जन्मी मुथुलक्ष्मी, सिर्फ भारत की पहली महिला सर्जन ही नहीं, बल्कि देश की पहली महिला विधायक भी बनीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी। साल 1954 में उन्होंने कैंसर संस्थान की स्थापना की, जहां हर वर्ष 80,000 से अधिक मरीजों का इलाज किया जाता है। उनकी 138वीं जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr Muthulakshmi Reddy) का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब लड़कियों की शिक्षा को समाज में महत्व नहीं दिया जाता था। उनके पिता नारायण स्वामी अय्यर एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रिंसिपल थे, जबकि उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं।
उनके माता-पिता चाहते थे कि उनकी शादी कम उम्र में हो जाए, लेकिन मुथुलक्ष्मी ने शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाई। हालांकि, उनके लिए यह राह आसान नहीं थी। समाज में लड़कियों की शिक्षा को तुच्छ माना जाता था, और जब उन्होंने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिले के लिए आवेदन किया, तो उसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि कॉलेज में केवल लड़के ही पढ़ सकते हैं।
परिवार और शिक्षकों के सहयोग से उन्होंने इस बाधा को पार किया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला स्टूडेंट बनीं। आगे की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड भी गईं और 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं।
- 1907 से 1912 तक मद्रास मेडिकल कॉलेज में अध्ययन करते हुए, उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
- वह पुरुषों के कॉलेज में प्रवेश पाने वाली पहली छात्रा थीं।
- सरकारी प्रसूति और नेत्र अस्पताल में पहली महिला हाउस सर्जन बनकर उन्होंने इतिहास रचा।
- उन्होंने 'अव्वाई होम' (बच्चों के लिए) और कैंसर संस्थान की स्थापना की, जो मानवता के लिए उनके दो महान उपहार हैं।
- एनी बेसेंट और महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद, उनका झुकाव समाज सेवा और राजनीति की ओर हुआ।
- 1927 में चेन्नई विधान परिषद में पहली महिला विधायक के रूप में उनकी नियुक्ति एक ऐतिहासिक घटना थी।
- विधान परिषद की पहली महिला उपसभापति और मद्रास कॉरपोरेशन की पहली एल्डरवुमन बनकर उन्होंने महिला सशक्तिकरण का नया अध्याय लिखा।
शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के बाद, मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr Muthulakshmi Reddy) ने समाज सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए। 1927 में, वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण सुधार किए, जिनमें खासतौर पर बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाना और देवदासी प्रथा को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाना शामिल था।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने महिलाओं के अधिकारों और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर लगातार काम किया। उन्होंने गरीबों और जरूरतमंद महिलाओं के लिए कई नीतियाँ बनाईं और उन्हें न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू से प्रभावित होकर, मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने महिलाओं के कल्याण और उनके अधिकारों के लिए कई पहल कीं। उन्होंने 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की, जो अनाथ लड़कियों और बेसहारा महिलाओं को शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
इसके अलावा, उन्होंने 1954 में कैंसर संस्थान की नींव रखी, जहाँ हर साल हजारों मरीजों का इलाज किया जाता है।
डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr Muthulakshmi Reddy) के समाज सुधार कार्यों को देखते हुए, उन्हें 1956 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका योगदान महिलाओं के अधिकारों और चिकित्सा क्षेत्र में अतुलनीय रहा।
1968 में, 81 वर्ष की आयु में, उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी लाखों महिलाओं को प्रेरित करते हैं।
डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr Muthulakshmi Reddy) सिर्फ एक डॉक्टर या विधायक नहीं थीं, बल्कि वह समाज सुधार की एक सशक्त प्रतीक थीं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा को आगे बढ़ाने में लगा दी। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हौसला मजबूत हो, तो कोई भी समाजिक बाधा सफलता की राह में रोड़ा नहीं बन सकती।
आज भी, उनके संघर्ष और योगदान को याद कर हम सीख सकते हैं कि सही सोच और दृढ़ निश्चय से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।
Updated on:
08 Mar 2025 10:07 am
Published on:
07 Mar 2025 02:44 pm
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