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बर्फ के रंगों में इसतरह के बदलाव को देखकर दुनियाभर के वैज्ञानिक हैरान है। हालांकि ये बदलाव खूबसूरत तो दिखते हैं लेकिन ये पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। इटली के नेशनल रिसर्च काउंसिल के बिजियो डी मॉउरो (Biagio Di Mauro) ने बर्फ के रंग बदलने कि वजह एक एंकाइलोनेमा को बताया है। इसे नॉर्डेनस्कियोल्डी (Ancylonema Nordenskioeldii) कहते हैं। इस एल्कि की वजह से पतझड़ और गर्मी के मौसम में ऐसा होता है। लेकिन इनकी वजह से बनने वाला डार्क जोन खतरनाक है।डार्क जोन बनने से बर्फ तेजी से पिघलने लगती है।
ऐसे में बर्फ पिघलने के बाद ये एल्गी सूरज की रोशनी पाकर पहाड़ों पर फैलने लगेगी। इसकी वजह से पहाड़ों का फूड चेन और पर्यावरणीय चक्र खराब होने लगेगा। अगर इसी तरह से एल्गी फैलती रही तो इटैलियन एल्पस के पहाड़ों से साल 2100 तक दो तिहाई बर्फ पिघल जाएगी।
एक शोध के मुताबिक सफेद बर्फ सूरज की 80 फीसदी रेडिएशन ( sun’s radiation) को वातावरण में वापस भेज देती है लेकिन अगर एल्गी की वजह से बर्फ पिघल जाएगी तो इस रेडिएशन की वजह से धरती पर कई तरह के दुष्प्रभावी बदलाव होंगें।
इटैलियन एल्पस के पासो गैविया (Passo Gavia) नाम की जगह पर सबसे ज्यादा बर्फ गुलाबी हुई है. इस जगह की ऊंचाई 8590 फीट है। अगर यहां से तेजी से बर्फ पिघली तो इस पहाड़ के नीचे स्थित घरों को बहा ले जाएगी। इटैलियन से पहले अंटार्कटिका (Antarctica) के पहाड़ियों की बर्फ सफेद से हरी हो गई थी। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेंटीनल-2 सैटेलाइट दो साल से अंटार्कटिका की तस्वीरें ले रहा है. इन्हें जांचने के बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने पहली बार पूरे अंटार्कटिका में फैल रहे इस हरे रंग का मैप तैयार किया है। जिसे देखने के बाद लगता है कि कुछ सालों में पूरे अंटार्कटिका में हरे रंग की बर्फ (Green Snow) देखने को मिलेगी।
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बता दें भारत के महाराष्ट्र में स्थित लोनार झील में भी ऐसा हुआ था। इस झील का पूरा पानी अचानक गुलाबी रंग में बदल गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस झील के पानी का यह रंग एक तरह की शैवाल की वजह से हुआ है।