एकाग्रता अर्थात एक+अग्रता अर्थात एक के आगे रहना। संसार की परमशक्ति रचना शक्ति परमात्मा पिता ‘एक’ है। भक्ति में ‘एक’ इष्ट की अटूट भक्ति, जिसे नौधा भक्ति कहते हैं, उससे साक्षात्कार होता है। सांसारिक जीवन में भी एक से जुड़े रहने का बड़ा महत्त्व है। इसीलिए देखा जाता है कि बार-बार अपना लक्ष्य को बदलने वाले लोगों के प्रति इतना सम्मान भाव नहीं रहता और ऐसे व्यक्ति को स्थिर और विश्वसनीय भी नहीं माना जाता है। एक से संबंध जोड़े रखना एवं एकाग्र होना हमें सम्मान प्राप्ति का हकदार बनाता है।
एकाग्रता सिद्धि का सर्वोत्तम उपाय है यह मन को व्यर्थ की उलझनों एवं समस्याओं से दूर रखना है। जिनसे अपने लक्ष्य का सीधा संबंध हो ऐसी ही बातों और विचारों तक सीमित रहा जाए। कुछ लोग घर, परिवार, मुहल्ले, समाज, देश आदि की व्यर्थ बातों में ही अपनी शक्ति गवां देते हैं। ऐसी बातों में उलझने की वृत्ति निरर्थक उत्सुकता की वृत्ति कही जाती है। यह निरर्थक उत्सुकता की वृत्ति ही हमारी विचारधारा को संकीर्ण बनाती है और इसमें उलझने से मन अस्त-व्यस्त, छिन्न-भिन्न और चंचल ही बना रहता है।