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46 पेड़ों को बचाने के लिए जापान ने जुटाए करोड़ों रुपए, जानिए क्यों खास हैं ये पेड़

पेड़ों के संरक्षण के लिए एक वर्ष में जितना खर्च होना है उससे दस गुना अधिक लोगों ने चंदा दिया है। लोग कई माध्यमों से चंदा दे रहे हैं।

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Sunil Sharma

Feb 08, 2021

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ये कहानी महज परमाणु विकिरण से प्रभावित पेड़ों को बचाने की नहीं है। ये उस देश के जज्बे और जीवटता की मिसाल है, जिसने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ऐसे प्रयास किए।

पेड़ और पर्यावरण की रक्षा कैसे की जाती है, ये जापान से सीखिए। ७४ वर्ष पहले हिरोशिमा-नागासाकी की परमाणु बम त्रासदी के बाद रेडिएशन के दुष्प्रभाव से क्षतिग्रस्त हो चुके पेड़ों को बचाने के लिए पूरे जापान ने चंदा जुटाया है। पिछले आठ महीने में लोगों ने पेड़ों को सुरक्षित करने के लिए २४ मिलियन येन (करीब १. ६१ करोड़ रुपए) एकत्रित किया है। नागासाकी के एक अधिकारी के मुताबिक चार किमी के दायरे में आणविक किरणों से प्रभावित ४६ पेड़ हैं। इनमें से ३० पर विकिरण का असर सबसे अधिक है। पहले इन्हें संरक्षित किया जा रहा है।

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अधिकारी का कहना है कि पेड़ों के संरक्षण के लिए एक वर्ष में जितना खर्च होना है उससे दस गुना अधिक लोगों ने चंदा दिया है। लोग कई माध्यमों से चंदा दे रहे हैं। ७९ वर्षीय नोबुको इसायमा ने भी सात लाख येन दिया था। उनका कहना है कि मैंने ऐसा इसलिए किया है ताकि मैं अपने बच्चों को भी पेड़ों को सुरक्षित रखने की सीख दे सकूं। जापान सरकार की ओर से भी हिरोशिमा और नागासाकी में सार्वजनिक स्थानों पर रेडिएशन से क्षतिग्रस्त पेड़ों को सुरक्षा के लिए भी १.२ मिलियन येन जारी किया गया है।

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ऐसे बचाया जा रहा है पेड़ों को
सबसे पहले विकिरण से प्रभावित पेड़ों को हानिकारक सूक्ष्मजीवों से बचाया जा रहा है। उनकी नियमित निगरानी की जा रही है। कमजोर टहनियों को नीचे से सहारा दिया जा रहा है। विशेष लेप लगाया जा रहा है। साथ ही पेड़ के पास की मिट्टी को उर्वरक बनाया जा रहा है।

गीत-संगीत से जुटाई बड़ी धनराशि
अभियान में मशहूर जापानी गायक मसहरु फुकुयामा की बहुत बड़ी भूमिका है। नागासाकी के ५० वर्षीय मसहरु संगीत कार्यक्रमों में लोगों को परमाणु हमलों में क्षतिग्रस्त पेड़ों को बचाने के लिए चंदा देने का आह्वान किया। परमाणु बम पीडि़त के बेटे हिबाकुशा ने 2014 में इस पेड़ के लिए गीत जारी किया था। इसके माध्यम से ५.५ मिलियन येन (करीब ३७ लाख रुपए) चंदा आया था। यह धनराशि केवल उसी पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए खर्च किया जा रहा है।