24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

क्यों महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के मुख पर लगाई जाती थी हाथी की नकली सूंढ़, कौन था रामप्रसाद हाथी

9 मई को मनाई जाती है महाराणा प्रताप की जन्म जयंती आइए जानते हैं उनके घोड़े चेतक और हाथी रामप्रसाद के बारे में उनके हाथी रामप्रसाद के बारे में अकबर ने कही थी ये बात

4 min read
Google source verification
know about maharana pratap horse chetak and elephant ramprasad

क्यों महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के मुख पर लगाई जाती थी हाथी की नकली सूंढ़, कौन था रामप्रसाद हाथी

नई दिल्ली।महाराण प्रताप अकेले ऐसे राजपूत राजा थे जिन्होनें मुगल बादशाह अकबर के अधीन रहना स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान ( Rajasthan ) में हुआ था और आज उनकी जन्म जयंती है। महाराणा प्रताप की बात की जाए और चेतक का ज़िक्र न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। महाराणा प्रताप और चेतक का संबंध अनूठा था। वह महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय धोड़ा था। नीले रंग के चेतक में संवेदनशीलता, वफ़ादारी और बहादुरी कूट-कूटकर भरी हुई थी। महाराणा प्रताप के बचपन की एक कहानी प्रचलित है कि महाराणा उदय सिंह ने प्रताप के सामने दो घोड़े रखे महाराणा उदय सिंह ने उन दोनों घोड़ों में से उन्हें के घोड़ा चुनने के लिए कहा। कहानी के मुताबिक, एक घोड़ा सफ़ेद रंग का था और दूसरा घोड़ा नीले रंग का था। घोड़ा चुनने की प्रक्रिया के दौरान प्रताप के भाई शक्ति सिंह भी वहां मौजूद थे। कहते हैं शक्ति प्रताप से घृणा करते थे।

ऐसे चेतक को पाया था महाराणा प्रताप ने

कहानी के मुताबिक, महाराणा प्रताप ने पहली बार में ही चेतक ( chetak k ) को पसंद कर लिया था। उन्हें पता था कि अगर उन्होंने यह बात बोल दी कि उन्हें चेतक ही चाहिए तो शक्ति सिंह भी उसे लेने की ज़िद करते। चेतक को शक्ति सिंह की नज़र से बचाने के लिए महाराणा प्रताप के एक चाल चली। महाराणा प्रताप न चाहते हुए भी सफेद रंग के घोड़े की तरफ बढ़े और उसकी तारीफों के पुल बांधने लगे। उन्हें ऐसा करते देख शक्ति तेज़ी से गया और सफेद घोड़े की पीठ पर बैठ गया। उसके ऐसा करने पर महाराणा प्रताप ने उसे सफेद घोड़ा दे दिया और चेतक को ले लिया।

हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान चेतक ने किया था ये कमाल

इसके बाद महाराणा प्रताप की जो भी वीर गाथाएं प्रचलित हुईं उनमें चेतक का अपना ही स्थान है। चेतक की फुर्ती के कारण ही चेतक ने कई युद्धों को बड़ी सहजता के साथ जीता था। महाराणा प्रताप चेतक को अपने बेटे की तरह प्यार करते थे। चेतक को महाराणा प्रताप ने युद्ध के लिए अच्छे से प्रशिक्षण दिया था। कहते हैं युद्ध के दौरान चेतक को हाथी की नकली सूंढ़ लगाई जाती थी जिससे दुश्मन भ्रम में रहें। हल्दीघाटी ( Haldighati ) के युद्ध की बात करें तो चेतक ने उसमें अनोखे कौशल का प्रदर्शन किया। हल्दीघाटी का वह चित्र आप सबने देखा होगा जिसमें चेतक ने राजा मान सिंह के हाथी के मस्तक पर अपनी टाप रख दी थी। इसी दौरान मान सिंह के हाथी से चेतक ज़ख़्मी हो गया था।

भाई शक्ति सिंह से पहली बार गले मिले थे महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप बिना किसी सहायता के ज़ख़्मी चेतक को लेकर हल्दीघाटी से निकल गए। उनके पीछे मुग़ल सैनिक लगे हुए थे। घायल चेतक उस समय भी महाराणा को बचाने की सोच रहा था। चेतक 26 फुट के नाले को फुर्ती के साथ लांघ गया। लेकिन चेतक घायल था उसकी गति धीरे-धीरे कम होने लगी पीछे से मुग़लों के घोड़ों की ताप भी सुनाई दे रही थी। इतने में उसी समय पीछे से किसी ने आवाज़ दी। प्रताप ने पीछे देखा तो वह उनका भाई शक्ति सिंह था। महाराणा प्रताप से व्यक्तिगत विरोधों की वजह से शक्ति सिंह युद्ध में मुग़लों की तरफ से लड़ रहा था। लेकिन इस समय वह अपने भाई की रक्षा के लिए आया था। शक्ति सिंह ने उसके भाई को मारने आए दो मुग़लों को मौत भी के घाट उतार दिया। जीवन में पहली बार दोनों भाई प्यार से गले लगे। इस मिलन के दौरान चेतक ज़मीन पर गिर गया और उसने प्राण त्याग दिए। चेतक के मरने के बाद उसी जगह पर उसकी समाधी बनाई गई।

हाथी रामप्रसाद ने अकेले 13 हाथियों को मार गिराया

आपने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना है लेकिन उनका एक प्रिय हाथी भी था जिसका नाम था रामप्रसाद। यह हाथी भी अपनी स्वामी भक्ति और विलक्षण प्रतिभाओं के लिए प्रसिद्ध था। बता दें कि अल बदायुनी जो मुग़लों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था। उसने रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अपने लिखे एक ग्रंथ में किया है। बदायुनी ने लिखा है कि जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढ़ाई की तब अकबर ने दो ही चीजों को बंदी बनाने की मांग की थी। एक तो खुद महाराणा प्रताप और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। रामप्रसाद हाथी इतना समझदार और ताकतवर था कि हल्दीघाटी के युद्ध में उसने अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था।

रामप्रसाद ने भूखे-प्यासे रहकर किया था मुग़लों का विरोध

रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात बड़े हाथियों का चक्रव्यूह बनाया गया था और उनपर 14 हमवत को बैठाया गया तब जाकर उसे बंदी बनाया जा सका। रामप्रसाद को बंदी बनाकर अकबर के सामने प्रस्तुत किया गया। अकबर ने उसका नाम बदलकर वीरप्रसाद रख दिया। मुग़लों ने उसे गन्नों के साथ-साथ पानी पेश किया। लेकिन रामप्रसंद ने 18 दिनों तक मुग़लों के हाथ से न तो कुछ खाना ना ही पानी पीया। और इस तरह बिना खाए-पीए उसने अपने प्राण त्याग कर दिए। उसके मरने के बाद अकबर ने कहा था कि "जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को मैं क्या झुका पाऊंगा।" कहना गलत नहीं होगा जिस देश में चेतक और रामप्रसाद जैसे जानवर हैं उस देश का झुकना असंभव है। एक सच्चे राजपूत और सच्चे देशभक्त की वजह से हिंदुस्तान एक महान देश बनता है।