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गोरैया के संरक्षण केे लिए विश्नोई समाज की पहल, लगाए 29 घोंसले, जन-जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को कर रहे प्रेरित

पर्यावरण संरक्षण एवं जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए सदैव आगे रहा है विश्नोई समाज

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कर्नाटक के बागलकोट जिले के इलकल में गोरैया के लिए घोंसले तैयार करते विश्नोई समाज के लोग।

कर्नाटक के बागलकोट जिले के इलकल में गोरैया के लिए घोंसले तैयार करते विश्नोई समाज के लोग।

कभी घर-आंगन में दिनभर फुदकने-चहकने वाली गोरैया के लिए हमने अपने घरों के दरवाजे व खिड़कियां बंद कर ली हैं। बरामदे पर लगे पौधे व झाडिय़ों को काट कर इसकी जगह कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी हैं। लोगों की इस बेरुखी के कारण बीते एक दशक में इंसानों के साथ-साथ रहने वाली गोरैया की चहचहाहट काफी कम हुई है. लेकिन हाल के वर्षों में गोरैया के संरक्षण के लिए कई पक्षी प्रेमी आगे आए हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए सदैव आगे रहने वाले विश्नोई समाज ने एक बार फिर अपनी उदारता दिखाई है। कर्नाटक के बागलकोट जिले के इलकल के पास विश्नोई समाज ने गोरैया के संरक्षण के लिए 29 घोंसले लगाए हैं। इसके साथ ही जन-जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को अपने घरों में भी कृत्रिम घोंसला व पानी का पात्र रखने की अपील की है।

15 वर्ष से लगा रहे घोंसले
विश्नोई समाज इलकल के भरत गोदारा लियादरा ने बताया कि विश्नोई समाज पिछले 15 वर्ष से प्रतिवर्ष घोसले लगा रहा है। इलकल-होसपेट राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-50 पर इलकल के पास यह घोंसले लगाए गए हैं। पहले गांव व कस्बों में मिट्टी व बांस से बने घरों की बहुलता रहती थी। इसमें गोरैया अपना घोंसला बनाती थी। अब वह स्थिति नहीं है। विश्नोई समाज के शंकरलाल विश्नोई बारासन, ओमप्रकाश विश्नोई मोकातरा, भरत गोदारा लियादरा, मोहनलाल विश्नोई हेमागुड़ा, बंशीलाल सांगड़वा, दिनेश विश्नोई धमाणा, प्रेम विश्नोई भोजासर समेत विश्नोई समाज के लोग घोंसला लगाने के लिए आगे आए हैं।

विश्नोई समाज के 29 नियम
गोदारा ने बताया कि गुरु जांभोजी ने बिश्नोई संप्रदाय को अपनाने वाले लोगों को 29 नियम की आचार संहिता प्रदान की जिसका पालन करना प्रत्येक बिश्नोई के लिए अनिवार्य है। गुरु जांभोजी के 29 नियमों में विश्व कल्याण की भावना निहित है। इसी तर्ज पर यहां 29 घोंसले तैयार किए हैं। गुरु जंभेश्वर ने गोपालन किया। वे हरे वृक्षों को काटने एवं जीवों की हत्या को पाप मानते थे। वे हमेशा पेड़-पौधों, वन एवं वन्य जीवों के रक्षा करने का संदेश देते थे। विश्नोई संप्रदाय में खेजड़ी को पवित्र पेड़ माना जाता है। 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा की ओर से हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए। उनके साथ 363 से अधिक अन्य विश्नोई खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए। विश्नोई समाज में अमृता देवी को शहीद का दर्जा दिया गया है। जहां-जहां विश्नोई समाज बसे है। वहां जानवरों की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देते है।