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परदेश में परचम: अकाल से संघर्ष की शुरुआत, कर्नाटक में कर्मभूमि बनाकर बदली सैकड़ों की तकदीर

राजस्थान की तपती धरा और कठिन जीवन परिस्थितियों से निकलकर कर्नाटक के व्यावसायिक, सामाजिक और योग जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भंवरलाल आर्य आज हजारों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं। बालोतरा जिले के छोटे से गांव अराबा में जन्मे भंवरलाल ने 13 वर्ष की आयु में अकाल की मार झेली और 1975 से 1980 तक के कठिन समय ने उन्हें मजबूर किया कि वे घर छोड़कर कर्नाटक की ओर निकल पड़ें। यही कदम उनके जीवन की सबसे बड़ी शुरुआत साबित हुआ।

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भंवरलाल आर्य

भंवरलाल आर्य

राजस्थान की तपती धरा और कठिन जीवन परिस्थितियों से निकलकर कर्नाटक के व्यावसायिक, सामाजिक और योग जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भंवरलाल आर्य आज हजारों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं। बालोतरा जिले के छोटे से गांव अराबा में जन्मे भंवरलाल ने 13 वर्ष की आयु में अकाल की मार झेली और 1975 से 1980 तक के कठिन समय ने उन्हें मजबूर किया कि वे घर छोड़कर कर्नाटक की ओर निकल पड़ें। यही कदम उनके जीवन की सबसे बड़ी शुरुआत साबित हुआ।

पांचवीं कक्षा तक पढ़े भंवरलाल आर्य आज हजारों लोगों के लिए मार्गदर्शक हैं। सोशल मीडिया पर भी उनकी सक्रियता उन्हें युवा पीढ़ी से जोड़ती है। राजस्थान की मिट्टी में पले और कर्नाटक को कर्मभूमि बनाने वाले भंवरलाल आर्य की यह यात्रा न केवल संघर्ष और सफलता का पाठ पढ़ाती है, बल्कि दोनों राज्यों के संबंधों को मजबूत बनाने का प्रेरक उदाहरण भी है।

दो साल बिना वेतन काम
1980 में वे रायचूर जिले के सिंधनूर आए, जहां पहले घरेलू काम, फिर कपड़े की दुकान पर मामूली वेतन से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। दो साल तक बिना वेतन सेवा, फिर 50, 100 और 500 रुपए मासिक पर लगातार मेहनत और आखिरकार एक हजार रुपए वेतन के साथ दुकान के मैनेजर बने। मुंबई, सूरत और अहमदाबाद जैसे शहरों में परचेजिंग का काम संभालते हुए उन्होंने व्यापार की बारीकियां सीखीं। दस साल तक नौकरी करने के बाद वर्ष 1990 में जनता टेक्सटाइल की स्थापना की, जिसने बाद में इलेक्ट्रिकल व्यवसाय के साथ उड़ान भरी।

सैकड़ों लोगों को दिलाया रोजगार
आज 35 वर्षों से उनका व्यवसाय सिंधनूर और आसपास एक भरोसेमंद पहचान है। अपनी उन्नति के साथ उन्होंने समाज को आगे बढ़ाने का सिलसिला भी जारी रखा। अपने भाइयों से लेकर रिश्तेदारों और गांववालों तक सैकड़ों लोगों को राजस्थान से कर्नाटक लाकर रोजगार दिलाया, जिनमें से कइयों की अब खुद की दुकानें हैं।

राजस्थान-कर्नाटक सांस्कृतिक संबंधों के सेतु
यही नहीं, भंवरलाल आर्य राजस्थान-कर्नाटक के सांस्कृतिक संबंधों का जीवंत सेतु बन चुके हैं। व्यावसायिक सफलता के साथ उन्होंने समाजसेवा में भी कदम बढ़ाया। सिंधनूर में रामदेव चैरिटेबल ट्रस्ट के सचिव, रेडक्रॉॅस अध्यक्ष, जेसीज चेयरमैन, मर्चेन्ट्स एसोसिएशन अध्यक्ष बनकर कई सामाजिक कार्यों का नेतृत्व किया। सिंधनूर में बाबा रामदेव मंदिर निर्माण में भी विशेष भूमिका निभाई, जहां आज कर्नाटकभर से श्रद्धालु आते हैं।

लाखों लोगों को योग से जोड़ा
2005 में पतंजलि से जुडऩे के बाद उन्होंने योग को जीवन मिशन बना लिया। हरिद्वार में 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर से योग सीखकर वे कर्नाटक के गांव-गांव में योग प्रचार के माध्यम बने। आज वे पतंजलि योगपीठ हरिद्वार के दक्षिण भारत प्रभारी हैं और कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, गोवा, केरल और पुदुचेरी में योग-अभियान की कमान संभाल रहे हैं। पिछले तीस साल में कार से 18 लाख किमी यात्रा कर लाखों लोगों को योग से जोड़ा है।

पर्यावरण व शिक्षा क्षेत्र में विशेष कार्य
नारायणपुरी यूथ सोसायटी के संरक्षक है। सोसायटी ने राजस्थान के गुंदियाल गांव के सरकारी स्कूल को गोद लेकर वहां खेल मैदान, रनिंग ट्रैक बनवाया है और अब आधुनिक लाइब्रेरी को आकार दे रहे हैं। इस स्कूल के अब तक 50 विद्यार्थी सरकारी सेवाओं में चयनित हो चुके हैं। उनकी संस्था राजकुमार चैरिटेबल ट्रस्ट पर्यावरण, शिक्षा और खेल क्षेत्र में सक्रिय है।

मिल चुके हैं कई सम्मान
रक्तदान के क्षेत्र में भी वे प्रेरणास्रोत हैं और अब तक 63 बार रक्तदान कर चुके हैं और जिला स्तर पर रक्तदाता डायरेक्टरी भी बनी हुई है। योग, शिक्षा और समाजसेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें अचीवर अवॉर्ड 2023, विजय रत्न 2022, 26वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव सम्मान और सिद्धारूढ़ मठ सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।