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राजस्थान पत्रिका परिचर्चा: महर्षि दधीचि का त्याग, तपस्या और बलिदान आज के समय में प्रासंगिक

महर्षि दधीचि महातपोबली और शिव भक्त ऋषि थे। भारतीय सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार महान दानी महर्षि दधीचि की जयंती भाद्रपद शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में दानशीलता की कई कथा-कहानी प्रसिद्ध है। इनमें दानवीर ऋषि दधीचि की कथा भी प्रमुख स्थान रखती है।

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महर्षि दधीचि जयंती के अवसर पर कर्नाटक के हुब्बल्ली में आयोजित राजस्थान पत्रिका परिचर्चा में विचार रखते प्रवासी।

महर्षि दधीचि जयंती के अवसर पर कर्नाटक के हुब्बल्ली में आयोजित राजस्थान पत्रिका परिचर्चा में विचार रखते प्रवासी।

ऋषि दधीचि की कथा के अनुसार ब्रह्मदेव ने वृत्रासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिए भेजा था। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। महर्षि दधीचि जयंती के अवसर पर राजस्थान पत्रिका परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रवासियों ने महर्षि दधीचि के त्याग, तपस्या और बलिदान को आज के समय में प्रासंगिक बताया। प्रस्तुत है परिचर्चा के प्रमुख अंश:

असुरों पर दिलाई विजय
नागौर जिले के मेवड़ा निवासी गोपाल दायमा ने कहा, महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान देकर देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। यह त्याग मानवता को बताता है कि नि:स्वार्थ बलिदान ही समाज को आगे बढ़ाता है। यह जयंती महर्षि दधीचि के लोकहित और परोपकार के कार्य की याद में मनाई जाती है, जिन्होंने देवलोक की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था।

व्यक्तिगत सुख से ऊपर समाज का हित
चूरू जिले के फोगा निवासी देवकीनंंदन पारीक ने कहा, हमारे लिए दधीचि प्रेरणा हैं कि व्यक्तिगत सुख से ऊपर समाज का हित होता है। आज की चुनौतियों में यह सोच बहुत जरूरी है। वह संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्रासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से बड़े पूजनीय हुए।

दधीचि की कहानी जीवन जीने का सूत्र
जालोर जिले के नोसरा निवासी गोविन्द त्रिवेदी ने कहा, त्याग और तपस्या जीवन का वास्तविक धन है। दधीचि की कहानी केवल पौराणिक कथा नहीं बल्कि जीवन जीने का सूत्र है। महर्षि दधीचि ने राक्षस वृत्तासुर के वध के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था, जिससे वज्र का निर्माण हुआ और देवताओं की रक्षा हुई।

परोपकार और सेवा कार्य
चूरू जिले के रतनगढ़ निवासी अरूण शर्मा ने कहा, आज के समय में सेवा कार्य ही दधीचि के त्याग की सच्ची परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं। यह जयंती महर्षि दधीचि के महान परोपकार और मानव जाति के हित में निस्वार्थ भाव से अपना जीवन समर्पित करने के लिए मनाई जाती है।

समाजहित के लिए त्याग की भावना
जालोर जिले के नोसरा निवासी प्रशांत त्रिवेदी ने कहा, आज की युवा पीढ़ी को दधीचि की तरह राष्ट्र और समाजहित के लिए त्याग की भावना विकसित करनी चाहिए। शिक्षा में भी इस आदर्श का समावेश होना चाहिए।