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कारोबार शुरू करने से पहले जान सकेंगे फायदे-नुकसान का फंडा

जीएसटी में कारोबारी फिलहाल टैक्स की गणना और प्रक्रिया को लेकर ही उलझे हुए हैं। 

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Shruti Agrawal

Aug 02, 2017

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इंदौर. जीएसटी में कारोबारी फिलहाल टैक्स की गणना और प्रक्रिया को लेकर ही उलझे हुए हैं। वहीं कानून में कुछ एेसे भी प्रावधान किए गए हैं, जिससे नया कारोबार शुरू कर रहे कारोबारी अपने फायदे-नुकसान की जानकारी ले सकेगा। यानी जीएसटी में कारोबारी को अधिकार दिया गया है, वह अपना व्यापार शुरू करने से पहले ही एडवांस रूलिंग यानी अग्रिम निर्णय के तहत विभाग से टैक्स की गणना व प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी ले सकेगा।

इसका फायदा यह होगा कि कारोबार शुरू करने से पहले ही टैक्स की दरों के कारण होने वाले फायदे-नुकसान का पता चल जाएगा। इससे विभागीय कर निर्धारण प्रक्रिया के समय आने वाली मुश्किलों का सामना नहीं करना होगा।


सरकार ने जीएसटी में दो तरह के प्रावधान किए हैं। एडवांस रूलिंग यानी अग्रिम निर्णय व प्रोविजनल असेसमेंट यानी अस्थाई निर्धारण का प्रावधान किया है। इनके तहत कारोबारी विभाग से विधिवत रूप से व्यापार शुरू करने से पहले टैक्स से संबंधित सवालों के जवाब लिखित में विभाग से जान सकता है। जानकारों के अनुसार इस नए प्रावधान का लाभ नया व्यापार शुरू कर रहे लोगों को होगा।


एेसे समझें अग्रिम निर्णय
किसी कारोबार में मार्जिन 5 प्रतिशत बन रहा है। उस पर आपके द्वारा 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी का मूल्यांकन कर लिया गया। जब अफसरों ने निर्धारण किया तो उस वस्तु पर 18 प्रतिशत कर देयता थी, यानी 6 प्रतिशत अधिक कर जमा करना होगा। यह राशि आपके फायदे या मार्जिन से ही जमा होगी। एेसे में 1 प्रतिशत कर की राशि अधिक देना होगी। अब यदि आप चाहे तो इन सवालों के जवाब विधिवत जान सकते हैं। इससे कारोबार में किसी भी तरह की रिस्क की गुंजाइश नहीं रहेगी।

कारोबारी वस्तु पर टैक्स की दर क्या होगी?
क्या विभाग की ओर से कोई राहत का नोटिफिकेशन जारी किया गया है ?
जीएसटी कब और किस कीमत पर लगेगा?
जीरो टैक्स की श्रेणी में तो नहीं है?
रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है या नहीं?

एेसे समझें अस्थाई निर्धारण
व्यापार शुरू करने के बाद वस्तुओं के कर निर्धारण में कई मुश्किलें आती हैं। जैसे एक वस्तु की बिक्री के दौरान अनेक तरह के चार्जेस लिए जाते हैं। मोबाइल के साथ उसका कवर, हेडफोन आदि लिए जाते हैं। कई बार व्यापारी छूट भी प्रदान करता है। इन सभी को मिला कर जब कर निर्धारण करते हैं तो मुश्किल आती है। जीएसटी में निर्धारण की जिम्मेदारी भी व्यापारी की ही है। एेसे में जरूरी है] जिस वस्तु का व्यापार कर हैं उस पर कर की सही गणना भी पता कर लें। विभाग को एक चिट्ठी लिख भी सकतें हैं। जिसका जवाब 6 माह में देना होगा।

इसलिए किए खास प्रावधान
जीएसटी और वैट में एक खास अंतर है। वैट में टैक्स और रिटर्न व्यापारी को जमा करना होता था, निर्धारण विभागीय अधिकारी द्वारा किया जाता था। जीएसटी कानून में टैक्स लेना, रिटर्न भरना और निर्धारण करने की जिम्मेदारी भी व्यापारी की ही रहेगी। विभागीय निर्धारण होने पर कम निकला तो विभाग द्वारा इसे वसूला जाएगा। अपर आयुक्त सुदीप गुप्ता का कहना है कि किसी तरह की गलती नहीं हो, इसे देखते हुए यह प्रावधान किए गए है, जिससे कारोबारी पहले ही अच्छे से समझ लें।

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