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सालभर पहले आज ही हुआ था डीपीएस बस हादसा, सडक़ पर बिछ गई थी मासूमों की लाशें

बस हादसे की बरसी पर पत्रिका फिर पहुंचा घटनास्थल पर, जिम्मेदारों ने वादे-दावों को कर दिया ‘बायपास’

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इंदौर

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Hussain Ali

Jan 05, 2019

इंदौर. एक साल पहले आज ही के दिन स्कूल बस बायपास के अंडरपास पर डिवाइडर लांघ कर दूसरी ओर तेज गति से आ रहे ट्रक से टकरा कर चकनाचूर हो गई। हादसे में चार बच्चों और ड्रायवर की जान चली गई, शेष 9 लोग आज भी दर्दनाक हादसे के दर्द से उबर नहीं पाए हैं। पत्रिका बस हादसे की बरसी की पूर्व संध्या पर फिर बायपास पर पहुंचा। साल बीता, बायपास की गति और तेज हो गई। पहले तो भारी वाहन ही नजर आते थे, अब तो स्कूटर, मोटर साइकिलें भी फर्राटे भर रही हैं। सरकारी दावे-वादे कागजों में कछुआ चाल से चल रहे है। आधी-अधूरी सर्विस रोड बनी है, लेकिन रहवासी क्षेत्र के हिस्से आज भी अंधेरे में डूबे हैं। व्यवस्थाएं कुछ एेसी बिगड़ी कि हल्के वाहनों के लिए बनी सर्विस रोड भी भारी वाहनों के कब्जे में चली गई।

कागजों में भी कछुआ चाल चल रही योजनाएं, अमल पर कोई गंभीर नहीं
लापरवाह प्रशासन
गाइड लाइन बनाई, नहीं कराया पालन
हादसे के बाद प्रशासन ने शहर के स्कूल संचालकों के लिए गाइड लाइन बनाकर बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूक इंदौर पोर्टल भी तैयार किया। लेकिन, बाद में समय के साथ प्रशासन ने ढिलाई बरतना शुरू कर दिया। प्रशासन ने स्कूल संचालकों से शपथपत्र भराना तय किया, लेकिन इसका विरोध शुरू हो गया। मामला कोर्ट तक पहुंचा। स्कूल बस में सीट बेल्ट का मामला भी अधर में रह गया।
प्रशासन ने जागरूकता पोर्टल बनाया, लेकिन इस पर सभी स्कूलों ने जानकारी अपडेट नहीं की। प्रशासन की गाइड लाइन में स्कूलों संचालकों ने शपथपत्र पर आपत्ति जताई तो मामला शांत हो गया। हालांकि स्कूल बसों में कैमरे लगाने से लेकर नंबर डिस्प्ले करने और बसों की स्पीड पर जरूर ब्रेक लगा। स्कूल वाहन कर्मचारियों के वेरिफि केशन के नियम बने, लेकिन इसके पालन में प्रशासन व स्कूल दोनों रुचि नहीं दिखाई। इस संबंध में अपर कलेक्टर कैलाश वानखेड़े से चर्चा की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई।
सुरक्षा के लिए बनाए नियम
- स्कूल बसों की स्पीड घटाकर 40 किमी प्रति घंटा।
- बच्चों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाना।
- बसों में महिला कर्मचारी रखना।
-स्कूल बसों में जीपीएस व्यवस्था, स्कूलों के कंट्रोल रूम से उनकी मॉनिटरिंग।
- स्कूल वाहनों में जिम्मेदारों के फ ोन नंबर डिस्प्ले हों।

गैरजिम्मेदार पुलिस
स्टाफ का नहीं कर पाई वेरिफिकेशन
बस हादसे के बाद पुलिस टीम सडक़ों पर उतरी और एक दिन में 107 स्कूली बसों में कमी पाए जाने पर चालान बनाए। इसके बाद सभी स्कूल स्टाफ के वेरिफिकेशन की मुहिम भी हाथ में ली, लेकिन सालभर में भी कुछ नहीं कर पाए।
बस हादसे के दो दिन बाद पुलिस टीम ने एक दिन में 107 स्कूली बसों के चालान बनाए थे, अधिकांश में स्पीड गवर्नर की कमी के साथ ही अन्य अनियमितताएं मिली थीं। इसके बाद पुलिस ने धारा 144 के तहत सभी स्कूलों के कर्मचारियों की जानकारी ट्रैफिक थाने में देने के निर्देश दिए। शुरुआती एक सप्ताह में तो पुलिस टीम सक्रिय रही, लेकिन इसके बाद स्कूली बसों व स्टाफ के वेरिफिकेशन को ठंडे बस्ते में डाल दिया। ट्रैफिक पुलिस के पास पांच डीएसपी के नेतृत्व में मजबूत टीम है, लेकिन स्कूलों पर कार्रवाई के मामले में किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई। इसी कारण एक साल बाद भी स्कूल बसों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।

स्कूल बसों में सुधार के लिए कार्रवाई चल रही है। एएसपी महेंद्र जैन के पास जानकारी है।
यूसुफ कुरैशी, एसपी हेडक्वार्टर व ट्रैफिक

स्कूल बसों के मामले में कार्रवाई हुई है, वेरिफिकेशन भी किया है। अभी जानकारी नहीं है, पूरी जानकारी लेकर बताता हूं।
महेंद्र जैन, एएसपी ट्रैफिक

बेपरवाह आरटीओ
दिन बीतने के साथ जा रहा हादसे का दर्द
स्कूली वाहनों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया। मामले में तत्कालीन आरटीओ डॉ. एमपी सिंह को हटा दिया गया। बसों में कैमरे लगाए जाने का नियम लागू करने के बाद कुछ दिनों तक तो कैमरे चालू किए गए, लेकिन फिलहाल कितनी स्कूली बसों के कैमरे चालू है, इसकी जानकारी किसी के पास भी नहीं है।

1. बस हादसे के बाद राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थाओं के वाहनों की अधिकतम गति सीमा 60 से घटाकर 40 किमी प्रति घंटा निर्धारित कर दी है।
वर्तमान स्थिति : दो माह तक उडऩदस्ते ने स्कूल बसों को रोक-रोककर स्पीड टेस्ट लिया। लेकिन, पिछले कई माह से स्कूल बसों की चेकिंग बंद कर दी गई।

2.परिवहन विभाग ने आरटीओ को आदेश दिया था कि सभी स्कूल बसों व यात्री बसों में अनिवार्य रूप से कैमरे लगवाए जाएं।
वर्तमान स्थिति : इस नियम का पालन नहीं करने वाली बसों के खिलाफ कार्रवाई बंद हो चुकी है।

3. स्कूल बसों में जनवरी से ही जीपीएस सिस्टम लगाने का नियम जारी कर दिया था।
वर्तमान स्थिति : बसों में लगे जीपीएस चालू है या खराब, यह जानकारी स्कूल उपलब्ध नहीं करा रहे हैं।

4. स्पीड गवर्नर सर्टिफिकेट में अधिकतम गति 40 किमी बताई थी। जबकि बस की रफ्तार 68 किमी प्रति घंटा व हादसे के दौरान 58 किमी प्रतिघंटा थी।
वर्तमान स्थिति : विभाग ने फिटनेस जांच की प्रक्रिया में बदलाव करते हुए फिटनेस टेस्ट के दौरान बस को 10 दिनों की जीपीएस और बस रूट रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन यह नियम कागजों तक ही सीमित रह गया है।

जनआक्रोश देख किए थे वादे
गत वर्ष की शुरूआत में हुए इस दर्दनाक हादसे के बाद जनआक्रोश के आगे प्रशासन को झुका और सरकार ने बायपास के आसपास सुधार के कई वादे किए। इसमें सर्विस रोड बनाना, क्रॉसिंग संवारना, खुली स्टार्म वाटर लाइनों पर ढक्कन लगाना, बायपास क्रॉस करने के लिए सघन बसाहट क्षेत्र निरंजनपुर से नेमावर रोड के बीच एक और फ्लाय ओवर, बायपास की सर्विस रोड पर दोनों ओर ५ किमी एरिया में स्ट्रीट लाइट लगाना आदि शामिल थे।

एक साल में यह बदला
यह कार्य नेशनल हाइवे अथारटी को करने थे। हादसे के तत्काल बाद ही प्रशासन व नगर निगम ने कार्य-योजना तैयार की। बसाहट क्षेत्र बढऩे और २९ गांव नगर निगम सीमा में शामिल होने से बायपास का ९० फीसदी हिस्सा नगरीय सीमा में शामिल हो गया है। इसके आसपास १०० से ज्यादा टाउनशिप आकार ले चुकी है। इनमें लोगों ने रहना भी शुरू कर दिया है।

- वर्तमान में सर्विस रोड का कार्य चल रहा है। स्ट्रीट लाइट का कार्य नगर निगम से अनुमति के लिए अटका है। दोनों के बीच इसके बिल को लेकर पेंच है। एनएचएआइ कह रही है, बिजली बिल नगर निगम को भरना है।
- खुली स्टार्म वाटर लाइन व ड्रेनेज को ढकने का कार्य कहीं हुआ और कहीं खुली पड़ी है।
- अंडरपास के स्थान पर मिरर और अन्य यातायात सिग्नल लगाने का कार्य अधूरा है।
- कनाडि़या अंडरपास पर ही सारा दबाव है। एमआर-१० जंक्शन पर भी कनेक्टिविटी नहीं होने से वाहन गुत्मगुत्था हो रहे हैं।
- एमआर-10 और बायपास के बीच 500 मीटर का हिस्सा आइडीए को बनाना है, लेकिन फ्लायओवर प्लानिंग के चलते उलझ गया है।
- क्रॉसिंग पर यातायात संकेतक भी नजर नहीं आते, जबकि वाहनों की स्पीड बहुत तेज होती है।

काम चल रहा है...
एनएचएआइ के चीफ इंजीनियर रवि गुप्ता ने कहा, हादसे के बाद जिन कार्यों की योजना बनाई, सभी शुरू हो चुके हैं। कुछ काम नगर निगम के साथ मिल कर होना है, इससे देरी हो रही है। एमआर-10 सहित दो फ्लायओवर को मंजूरी मिल चुकी है।

और... इनके जज्बे को सलाम
दोबारा पैरों पर खड़ी हुई ‘खुशी’, जाने लगी स्कूल
बस हादसे में दूसरी की छात्रा खुशी बजाज को सिर में गंभीर चोट आने से वेंटिलेटर पर रखा गया था। दिमाग के बाएं हिस्से में चोट के असर से वह बेजान पलंग पर पड़ी रहती थी। खातीवाला टैंक निवासी पिता मनोज बजाज, मां भारती ने होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. जाहिद नूरानी ने इलाज शुरू किया। कुछ ही माह में खुशी की हालत में सुधार दिखाई देने लगा। अब खुशी दोबारा स्कूल जाने लगी है।

अरीबा की 11वीं सर्जरी की तैयारी, फिर भी दी परीक्षा
छठी की छात्रा अरीबा कुरैशी को हादसे में मल्टीपल फै्रक्चर हुए थे। पिता डॉ. इरफान कुरैशी और मां डॉ. सायमा कुरैशी ने बताया, 8 जनवरी को 11वीं सर्जरी होना है। दाएं हाथ और पैरों की फिजियोथैरेपी जारी है। अरीबा क्लास टॉपर थी। छठी छठी में उसे प्रमोट किया गया था। अब 7वीं की छमाही परीक्षा में उसने भाग लिया। 86 फीसदी अंक लाई। सर्जरी के बाद वह फाइनल परीक्षा देना चाहती है।

माता-पिता के जख्म आज भी हरे
बस हादसे को आज पूरा एक साल हो गया, जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को खो दिया, उनके जख्म आज भी हरे हैं। जो बच्चे गंभीर घायल हुए थे, वे आज भी हादसे को याद कर कांप जाते हैं। ‘पत्रिका’ से चर्चा में ऐसे माता-पिता ने प्रशासन के प्रति अपने गुस्से को जाहिर करते कहा, अब हमें किसी से कोई उम्मीद नहीं है। बस इतना जानते हैं कि उनकी लापरवाही से हमारे बच्चे इस दुनिया से चले गए।
बेटी तो नहीं लौटेगी

प्रशासन से हमें न तो पहले कोई उम्मीद थी और न ही अब है। प्रशासन कुछ कर भी ले तो हमारी बेटी तो अब वापस नहीं आ सकती। हमें तो यही लगता है कि श्रुति हमारे बीच ही है। अपने मन की संतुष्टि के लिए समाजसेवा में मन लगाते है।
घनश्याम लुधियानी (श्रुति के पापा)

किसी से उम्मीद नहीं
सबको साल बीतने के बाद ही हादसे की याद आई। मुझे अपनी बेटी हरमीत को न्याय दिलाने के लिए जो करना होगा, कर लूंगी। किसी और से कोई उम्मीद नहीं है। हादसे को नियति मानकर गम भूलने की कोशिश करती हूं।
जसप्रीत (हरमीत की मम्मी)

औरों के साथ न हो
ये हिंदुस्तान है, यहां हादसों को लोग एक समय के बाद भूल ही जाते है। न्याय की उम्मीद किसी से भी नहीं है। अब यही चाहते हैं कि जो हमारे साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो। किसी और के बच्चों के साथ ऐसा न हो।
प्रशांत अग्रवाल (कृति के पापा)

हम आज भी डरे हुए हैं
पार्थ उस हादसे के दौरान सो रहा था और बेहोशी की हालत में ही वह अस्पताल पहुंचा था। इसलिए उसे हादसा याद नहीं है, लेकिन हम आज भी डरे हुए है। बेटे के हाथ में फै्रक्चर डेढ़ माह के बाद रिकवर हो पाया। अफसोस है कि आज भी सीबीएसइ की गाइडलाइन का उल्लंघन हो रहा है और जिम्मेदार सक्रिय नहीं हैं।
मनीष बसानी (पार्थ के पापा)

आज तक नहीं उबर पाया है बेटा
दैविक के बाहिने हाथ की हड्डियों में फ्रैक्चर था। कुछ टूट गई और कुछ जगह पर से खसक गई थी। आज भी उसकी रेगुलर फिजियोथैरेपी हो रही है। दैविक आज तक 5 जनवरी को हुए उस हादसे से उबर नहीं पाया है। तीन माह तक लंबे इलाज के बाद जब अस्पताल से घर लौटा तो दोस्तों से हादसे की ही बात करता रहता था।
नीतू वाधवानी (दैविक की मम्मी)

अब सुरक्षित की बसें

स्कूल प्रशासन ने शनिवार को हादसे में मृत बच्चों और ड्राइवर को श्रृद्धासुमन अर्पित करने के लिए श्रृद्धांजलि सभा आयोजित की है। इसमें स्कूल का पूरा स्टाफ रहेगा। हमारी कोशिश रहती है कि स्कूल में पढऩे वाला बच्चा पूरी तरह सुरक्षित रहे। हादसे के तत्काल बाद हमने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन करते हुए जो भी आवश्यक सुधार थे, कर दिए। हमारी बसें पूरी तरह सुरक्षित है। बसों में सीट बेल्ट, पेनिक बटन, बैग रेक, विंडो ग्रिल सहित सभी सुरक्षित मापदंड है।
- फैजल खान, निदेशक, जागरण सोशल वेलफेयर