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इंदौर

ये भील योद्धा था इंडियन रॉबिन हुड, अंग्रेजों को लूट मिटाता था गरीबों की भूख!

अमर शहीद टंट्या मामा की कर्मस्थली पातालपानी में उनका स्मारक एक साल में तैयार होगा।

इंदौरDec 05, 2016 / 06:25 am

Kamal Singh

full story of adivasi freedom fighter tantya bhil

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इंदौर. उनकी वीरता और अदम्य साहस की बदौलत तात्या टोपे ने प्रभावित होकर टंट्या को गुरिल्ला युद्ध में पारंगत बनाया था। अंग्रेजों के शोषण तथा विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ उठ खड़े हुए और देखते ही देखते वे गरीब आदिवासियों के मसीहा बनकर उभरे। वे अंग्रेजों को लूटकर गरीबों की भूख मिटाते थे।
हम बात कर रहे हैं इंडियन रॉबिनहुड के नाम से पहचाने जाने वाले टंट्या भील की। आज देश की आजादी के जननायक और आदिवासियों के हीरो टंट्या भील की पुण्यतिथि है।

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उन्होंने गरीबी-अमीरी का भेद हटाने के लिए हर स्तर के प्रयास किए थे। जिससे वे छोटे-बड़े सभी के मामा के रूप में भी जाने जाने लगे। मामा संबोधन इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रत्येक भील आज भी अपने आपको मामा कहलाने में गौरव का अनुभव करता है।

विद्रोही तेवर से मिली थी पहचान

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विद्रोही तेवर से कम समय में ही बड़ी पहचान हासिल की थी। आजादी के पहले हमारे देश में अंग्रेजों का साम्राज्य था और गरीब आदिवासियो के बारे में भारत में अंग्रेज शासन दौर में बहुत कम लिखा जाता था और उनके पक्ष में बहुत कम काम होता था। इस महत्वपूर्ण कमी के कारण भारत के राष्ट्रीय आंदोलनों के इतिहास में एक शून्यता जैसी दिखती है।



संस्कृति को बाहरी प्रभाव से बचाने की थी चिंता

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इस शून्यता को भरने के लिए हमें भारतभर में व्यापक रूप से फैले उन जनजातीय समुदायों के इतिहास को नजदीक से देखना होगा। जिन्होंने अधिकारों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। आदिवासियों के विद्रोहों की शुरुआत प्लासी युद्ध (1757) के ठीक बाद ही शुरू हो गई थी और यह संघर्ष बीसवीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा। अपने सीमित साधनों से वे लम्बे समय तक संघर्ष कर पाए, क्योंकि वनांचल में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का उन्होंने उपयोग किया था। सामाजिक रूप से उनमें आपस में एकता थी और अपनी संस्कृति को बाहरी प्रभाव से बचाने की उन्हें चिंता भी थी। इन बातों ने उनमें एकजुटता पैदा की और वे शोषण तथा विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ उठ खड़े हुए।



रानी लक्ष्मीबाई से ली थी प्रेरणा
टंट्या भील, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से प्रेरणा लेकर अन्याय का विरोध करते थे। वे गरीबों की भी भरपूर मदद करते थे। इसके लिए वे लूटपाट भी कर लेते थे, लेकिन पूरा धन गरीबों में बांट देते थे। टंट्या मामा के कारनामों के चलते अंग्रेज ही उन्हें रॉबिनहुड नाम देते है।

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कर्मस्थली पातालपानी में उनका स्मारक बनेगा
अमर शहीद टंट्या मामा की कर्मस्थली पातालपानी में उनका स्मारक बनाया जाएगा। इसके लिए शनिवार को समारोहपूर्वक भूमि पूजन किया गया। करीब एक साल के भीतर स्मारक के रूप में मूर्ति व गार्डन विकसित करने की योजना है। सुबह 11 बजे से भूमिपूजन कार्यक्रम का समय तय किया गया, लेकिन विधायक तीन घंटे देरी से पहुंचे, जिस कारण शुरुआत दोपहर दो बजे हुई। उधर, तीन घंटे तक सांसद सावित्री ठाकुर, जिला पंचायत अध्यक्ष कविता पाटीदार, भाजपा जिलध्यक्ष अशोक सोमानी, जनपद अध्यक्ष लीला संतोष पाटीदार आदि सहित बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे इंतजार करते रहे। दोपहर दो बजे पातालपानी स्थित टंट्या मामा के मंदिर में पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद स्मारक स्थल पहुंचकर भूमिपूजन किया गया। यहां स्मारक के रूप में टंट्या मामा की प्रतिमा स्थापित होगी। साथ ही आसपास गार्डन विकसित किया जाएगा। अफसरों ने बताया रविवार को टंट्या मामा की पुण्यतिथि पर यह कार्यक्रम होना था लेकिन किन्हीं कारणों के चलते एक दिन पहले किया गया। इससे पहले स्कूली छात्राओं ने सांस्कृतिक नृत्य की प्रस्तुति दी। पातालपानी में ही करीब 25 लाख रुपए की लागत से बनने वाले सामुदायिक भवन की भी घोषणा की गई।

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