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ऋषि परंपरा की देन है जल व पर्यावरण का संरक्षण

ऋषि परंपरा की देन है जल व पर्यावरण का संरक्षण

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gayri yagya


इंदौर। यह हम सब भलीभांति जानते हैं कि ऋषि-मुनियों ने सीमेंट-कांक्रीट के ढेर पर बैठकर तपस्या नहीं की, बल्कि उन्होंने वन स्थल व नदियों के किनारे आश्रम बना कर ही तपस्या की। ऐसा करके उन्होंने जीवन जीने और स्वस्थ रहने के लिए पर्यावरण व जल का महत्व प्रतिपादित किया। उनकी यह व्यवस्था पौधरोपण और जल संरक्षण का महत्व उजागर करती है। आज हम सीमेंट-कांक्रीट के जंजाल में फंसकर अपने को असहाय सा महसूस कर रहे है। जल संरक्षण और पर्यावरण की सुरक्षा ऋषि परंपरा की ही देन है।
यह बात अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ तथा प्रज्ञा पुराण कथा के अंतिम दिन श्यामबिहारी दुबे ने कही।
उन्होंने कहा कि गायत्री मंत्र का जप करने से सांसारिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है। बायपास रोड स्थित वनखंडी हनुमानमंदिर मैदान में उन्होंने राष्ट्र जागरण विषय पर भी संबोधित किया। शंकरलाल शर्मा, सिद्धार्थ सराठे ने बताया कि महायज्ञ एवं प्रज्ञा पुराण कथा के समापन अवसर पर बड़ी संख्या में लोगों ने यज्ञ हवन कुंड में आहुतियां समर्पित की। कनाडिय़ा शक्ति पीठ के प्रमुख शंकरलाल शर्मा, संजय शर्मा, सिद्धार्थ सराठे, संजय सोनेरे सहित स्थानीय गणमान्य नागरिकों ने श्यामबिहारी दुबे को अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित भी किया।
पारणा महोत्सव
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ पश्चिम क्षेत्र इंदौर के तत्वावधान में 50 ज्यादा वर्षीतप आराधकों का पारणा महोत्सव आज हो रहा है। अरिहंत मार्गीय ज्ञानचंद्र मसा आदि ठाणा की निश्रा में आयोजन रिंग रोड स्थित डाकोलिया परिसर अक्षत गार्डन के पास हो रहा है।
मुख्य संयोजक सुभष वन्यायक्या एवं अनिल बरडिय़ा ने बताया कि भव्य पंडाल में 5 हजार लोगों शामिल होंगे। 400 दिनों तक एक दिन निराहार उपवास व एक दिन पारणा के माध्यम से हिसाब से इस व्रत की शुरुआत आदिनाथ भगवान ने प्रारंभ की थी। भोजन संयोजक मानमल मेहता एवं मनीष श्रीमाल ने 5000 हजार से ज्यादा लोगों की भोजन प्रसादी की व्यवस्था की है। संपूर्ण देश से पधारे अतिथियों एवं आराधकों को पूरे क्षेत्र में रूकने की व्यवस्था की गई है। तपस्वियों का पारणा समाज बंधुओं एवं उनके परिजनों द्वारा गन्ने के रस से कराया जाएगा। वहीं कार्यक्रम में शहर में विराजित 50 से ज्यादा साधु-साध्वी भगवंत सान्निध्य प्राप्त होगा। महाराष्ट्र से भी 500 से अधिक समाज बंधु आए हैं।