
यहां पत्थर से जलाकर किया जाता है होलिका दहन, प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा
देशभर में होली का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। ये बात तो हम सभी जानते हैं कि, होली के त्योहार की शुरुआत होलिका दहन से होती है। इन दिनों देशभर में होलिका दहन के लिए आग जलाने की व्यवस्था माचिस या लाइटर से की जाती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं, की हजारों साल पहले, जब माचिस या लाइटर की ईजाद भी नहीं हुई थी, तब होलिका दहन कैसे किया जाता था ? जानकारों की मानें तो पहले के दौर में पत्थरों का घर्षण कर आग उत्पन्न की जाती थी। फिर उस आग से होलिका दहन की जाती थी। हजारों साल पुरानी इसी प्राचीन परंपरा को आज भी मध्य प्रदेश के एक गांव में ठीक उसी तरह पालन किया जा रहा है।
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के अंतर्गत आने वाले देपालपुर की, जहां आज भी होलिका दहन के लिए आदि काल की परंपरा ही निभाई जाती है। यहां धाकड़ सेरी मोहल्ले में चकमक पत्थरों की मदद से आदि काल की तर्ज पर ही आग उत्पन्न कर होलिका का दहन किया जाता है। इस कार्य को नगर पटेल रामकिशन धाकड़ अंजाम देते हैं। बताया जा रहा है कि, रामकिशन धाकड़ 9 पीड़ियों से होलिका दहन करते आ रहे हैं।
दिनभर चलते हैं ये काम
अलसुबह शुभ मुहर्त में होलिका दहन किया गया। वहीं, दोपहर 3 बजे के बाद नगर के ठाकुर मोहल्ले की गैर आती है। नगर पटेल को आमंत्रित कर गल देवता मैदान पर ढोल बजाकर और निशान लेकर ले जाते हैं और 6 फिट लंबी चुल में धधकते अंगारों के बीच नगर के पटेल सबसे पहले चुल की पूजा कर स्वयं धधकते अंगारों पर से निकलकर गल बाबा की पूजा करते हैं, फिर मनन्तधारी अंगारों से निकलते हैं। इसी के साथ एक दिवसीय मेले का शुभारंभ भी किया जाता है।
हजारों साल से चली आ रही परंपरा
बताया जाता है कि, ये आदि काल के समय की प्राचीन प्रक्रिया है, जिसमें पत्थरों को रगड़ कर अग्नि पैदा की जाती थी। वहीं, आज भी उसी प्रकार से यहां प्राचीन काल के इन सफेद कलर के चकमक पत्थरों को रगड़ कर चिंगारी से आग लगाकर होली जलाई जाती है, जो कि पूरे देश में एकमात्र होली जलाने की प्रक्रिया बताई जाती है, जिसे देखने के लिए कई प्रदेशों से लोग यहां पहुंचते हैं।
Published on:
08 Mar 2023 04:11 pm
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