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अमरीकन से व्यापार करना है तो छोडऩा होगी ये आदत, तभी मिल पाएगा लाभ

अमरीकन से व्यापार करना है तो छोडऩा होगा शॉर्टकट तरीके से काम निपटाना

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इंदौर. जब हम अमरीका में अपने देश का नाम लेते हैं तो मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और गुडग़ांव का नाम सब पहचानते हैं, पुणे और हैदराबाद भी जानने लगे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के किसी शहर की वहां पहचान नहीं है। प्रदेश न तो टूरिस्ट को आकर्षित करने के लिए कोई प्रयास कर रहा है और न ही कोई प्रचार। अमरीकन कंपनीज से व्यापार करने के लिए जरूरी है कि भारतीय शॉर्टकट तरीकों से काम को निपटाना छोड़ें। यूएस में सारे काम ऑनलाइन करना पसंद करते हैं, इसलिए खुद व्यापार में अच्छे सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर विदेशियों को व्यापार से जोड़ सकते हैं।

यह बात ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में वीआईपी नेक्सस द्वारा आयोजित नेस्कॉम सीएमई में ‘हाउ टू स्टार्ट बिजनेस इन अमरीका लीगली’ पर हुए सेमिनार में मुंबई के वैभव मानेक ने कही। उन्होंने कहा कि इंफोसिस और एलएनटी जैसी कंपनियों ने भी तीन लोगों के स्टाफ से विदेशों में शुरुआत की थी। व्यापार में वृद्धि के साथ सेटअप बढ़ता गया। कार्यक्रम के आयोजक अक्षय गोयल और श्रेयस झंवर बताते हैं कि इस तरह के सेमिनार की पांच सीरीज तैयार की है जिसे हर महीने किया जाएगा।

शहर के ४० व्यापारी करना चाहते हैं यूएस में व्यापार
गो वेब बेबी के सीईओ मनोज धनोतिया ने बताया कि शहर में 40 से ज्यादा लोग ऐसे मिले जो अपने प्रोडक्ट्स को अमरीका से जोडऩा चाह रहे थे, लेकिन उनके पास सही गाइडलाइन नहीं थी। इसमें सबसे ज्यादा वीजा को लेकर परेशानियां सामने आई। अगर आप सालाना टैक्स भरते हैं, व्यापार संबंधी पेपर हैं तो वीजा बनने में कोई दिक्कत नहीं आती है।

वहां न रेड पड़ती है और न अकाउंट्स की जांच
स्पीकर कवित संघवी ने अमरीका के टैक्स सिस्टम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वहां फेडरल और स्टेट टैक्स व्यापार में लगते हैं। लोग भी टैक्स जमा करना अपना दायित्व समझते हैं। निचले स्तर पर भी भ्रष्टाचार नहीं है। न किसी पर रेड पड़ती है और न ही बिना बताए अकाउंट्स की जांच के लिए दफ्तर आते हैं। ट्रंप की नई नीतियों का व्यापार पर कोई असर नहीं होगा। आज भी फार्म, मेडिकल, फूड इंडस्ट्रीज आदि में भारतीयों के लिए अपार संभावनाए हैं। हमें टेक्नोलॉजी, सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग जैसी सर्विसेज के लिए अमरीकी 30 डॉलर प्रति घंटा तक दे रहे हैं। व्यापार में मदद के लिए दिल्ली में एफसीएस संस्था मदद करती है।