सूत्रों के मुताबिक, सभापति द्वारा इन प्रस्तावों पर हस्ताक्षर नहीं करने के पीछे जनप्रतिनिधयों के महत्व को लेकर चिंता थी। पिछले कुछ सालों में निगम में जनप्रतिनिधियों का महत्व कम हुआ था। महापौर और एमआईसी सदस्यों के अलावा पार्षदों को अपने क्षेत्र के कामों के लिए अफसरों के आगे-पीछे घूमना पड़ता था। अफसरों को जनप्रतिनिधियों के विचारों से कोई मतलब नहीं था। वे जो काम करवाना चाहते थे, करवा लेते थे। मामले में सभापति अजयसिंह नरूका से चर्चा की तो उन्होंने बताया, अभी तक केवल कर्मचारियो से जुड़े प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए हैं। बाकी प्रस्तावों के बारे में उन्होंने बात नहीं की।