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#KhajranaGanesh खजराना गणेश में रोज 2 टन कचरे से बन रही शुद्ध धूप व अगरबत्ती

इंदौर का खजराना गणेश मंदिर देशभर में विख्यात है। इस गणेश मंदिर को अब जीरो वेस्ट मंदिर बना दिया गया है। यहां नारियल से खाद बनाई जा रही है तो फूलपत्ती से धूप व अगरबत्ती बन रही है। खजराना गणेश में इतने भक्त आते हैं कि यहां से रोज 2 टन कचरा निकलता है। सूखे कचरे को अलग कर इससे लोगों की आमदनी बढ़ाई जा रही है।

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गणेश मंदिर को अब जीरो वेस्ट मंदिर बना दिया गया

इंदौर का खजराना गणेश मंदिर देशभर में विख्यात है। इस गणेश मंदिर को अब जीरो वेस्ट मंदिर बना दिया गया है। यहां नारियल से खाद बनाई जा रही है तो फूलपत्ती से धूप व अगरबत्ती बन रही है। खजराना गणेश में इतने भक्त आते हैं कि यहां से रोज 2 टन कचरा निकलता है। सूखे कचरे को अलग कर इससे लोगों की आमदनी बढ़ाई जा रही है।

आयोजनों को जीरो वेस्ट करने के तहत नगर निगम इंदौर ने यह पहल शुरु की। गणेश उत्सव में खजराना गणेश मंदिर में इस काम में सफलता हासिल की जा चुकी है। इन दिनों खजराना गणेश मंदिर में रोज 10 हजार से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। गणेशजी के ये भक्त अपने साथ प्रसाद, फल, फूल भी लेकर आते हैं।

गणेशजी के प्रसाद, फल, फूल के रूप में यहां रोज 2 टन कचरा निकल रहा है। खास बात यह है कि इस कचरे का निपटान खजराना मंदिर में ही किया जा रहा है। जीरो वेस्ट मंदिर होने से कचरे से सामग्री निर्माण कर आमदनी हो रही है।

गीले कचरे के निपटान के लिए नगर निगम के सहयोग से हाउसकीपिंग एजेंसी द्वारा कचरे को सेग्रीगेट कर प्रोसेसिंग प्लांट तक पहुंचाया जाता है। नारियल को क्रश कर उसका कोकोपीट बनाया जाता है। ऑर्गेनिक वेस्ट कन्वर्टर में कोकोपीट और गीले कचरे को डालकर मशीन द्वारा खाद बनाते हैं। यह खाद खजराना गणेश मंदिर परिसर के गार्डन में उपयोग की जाती है।

खजराना मंदिर में गणेशजी के लिए भक्त फूलों की मालाएं लेकर आते हैं। गणेशजी के चढ़ावे के इन फूलों को स्टोरेज प्लांट की दूसरी इकाई में पत्तियों के रूप में सुखाकर पाउडर बनाया जाता है। इससे शुद्ध अगरबत्ती एवं शुद्ध धूप बत्ती बनाई जा रही है।

समिति सदस्यों ने बताया कि मंदिर परिसर से निकलने वाले सूखे कचरे को 14 प्रकार से अलग कर रिसाइकिल उद्योगों को बेचा जाता है। इससे कुछ राशि प्राप्त होती है। कचरा अलग करने के लिए 24 से अधिक लीटरबिन लगाए गए हैं।

हाउसकीपिंग एजेंसी के लोगों को अलग से 30 बोरियां दी हैं, ताकि कचरा अलग हो सके। मंदिर के आसपास दुकानदारों को भी इसमें सहयोगी बनाया है। मंदिर परिसर के आसपास की दुकानों से प्लास्टिक से बनी कोई भी सामग्री नहीं बेची जा रही है।