26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

independence day 2023: मालवी गीतों के जरिए क्रांति लाए थे नरेंद्र सिंह तोमर, दो साल जेल में भी रहे

लोगों को आजादी के आंदोलन से जोड़ा तो आवाज दबाने दो साल जेल में रखा...।

2 min read
Google source verification

इंदौर

image

Manish Geete

Aug 12, 2023

indore.png

,,

महात्मा गांधी से प्रभावित होकर नरेंद्रसिंह तोमर ने वर्ष 1942 में आजादी की लड़ाई में मैदान पकड़ा तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक हाथ में तम्बूरा लेकर मालवी गीतों के जरिए क्रांति की अलख जगाने की कला ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। आजादी के लिए जहां भी सभा होती वहां नरेंद्रसिंह के मालवी गीत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का बड़ा हथियार था। ग्राम पिवड़ाय को नरेंद्रसिंह तोमर से एक विशेष पहचान मिली है। इंदौर ही नहीं, विदेशों में भी नरेंद्रसिंह तोमर अपनी खास मालवी गीतों की शैली के कारण प्रसिद्ध हैं। 102 साल की उम्र में सुनने बोलने की क्षमता पर असर तो पड़ा है, लेकिन जोश अब भी बरकार है।

गीतों से क्रांति पथ का सफर

व र्ष 1942 में महात्मा गांधी के आव्हान पर नरेंद्रसिंह तोमर ने आजादी के लिए मोर्चा संभाला था। उस समय आजादी की बात करने वालों पर अंग्रेज कहर बनकर टूटते थे। ऐसे समय में बिना डरे उन्होंने मालवी गीतों के जरिए आजादी की लड़ाई लड़ने का जिम्मा उठाया। परिजन बताते हैं, मालवी में गाया केसरिया गाना उस समय पूरे इलाके में आजादी का गीत बन गया था। तम्बूरा लेकर अपनी जोशीली आवाज में जब नरेंद्रसिंह केसरिया बाना गीत गाते हुए चलते तो आजादी के दीवानों का रैला चल पड़ता। सुभाष चौक पर हुई बड़ी सभा में उनके गीत के बाद ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोल हुआ और वे अंग्रेजी सरकार के निशाने पर आ गए।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संघ का अध्यक्ष मदन परमालिया के मुताबिक, अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर तीन महीने महेश्वर की जेल में रखा, लेकिन उनकी आवाज को दबा नहीं पाए। जेल में विद्रोह की स्थिति बन गई तो छोड़ा गया। तोमर के आजादी को लेकर गाए जाने वाले मालवी गीतों के लोग जबरदस्त दीवाने थे। अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति वाले गीतों ने माहौल बनाया तो तोमर को जिलाबदर कर एक साल भोपाल की जेल में डाल दिया, लेकिन वहां भी उनकी आवाज को दबा नहीं पाए। गांधी के आव्हान पर इंदौर ही नहीं आसपास के पूरे इलाके मेें आजादी की तान छेड़कर तोमर जनआंदोलन खड़ा कर देते थे।

पहले वे नाथूसिंह के नाम से पहचाने जाते थे। गांधी को नाथूराम गोड़से ने गोली मारी तो उन्हें अपना नाम बदलकर नरेंद्रसिंह रख लिया। महात्मा गांधी उनके आदर्श थे। राज्य के साथ केंद्र सरकार की सम्मान निधि हासिल करने वाले गिने चुने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में नरेंद्रसिंह शामिल हैं। उनके जन्मदिन पर पिवड़ाय गांव में बीएसएफ के बैंड की धुन पर जश्न मनता है। तोमर के एक बेटे इंग्लैंड में डॉक्टर है, वे वहां भी मालवी गीतों का डंका बजा चुके है। पिछले साल 15 अगस्त को राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।