
ऐसा भी शौक : घर गिरवी रख फतह किए दुनिया के कई पहाड़, अब ज्वालामुखी पर जाने की तैयारी
LAKHAN SHARMA @ Indore . दुनियाभर में आज का दिन इंटरनेशनल माउंटेन-डे के रूप में मनाया जाता है। कई देशों के अलग-अलग युवाओं, बुजुर्गों यहां तक महिलाओं ने पर्वतों की ऊंचाइयों को छूकर कई कीर्तिमान बनाए हैं। ऐसा ही एक युवक है इंदौर के पास महू का 22 वर्षीय मधुसूदन पाटीदार। छोटी सी उम्र में इस युवा ने उन ऊंचाइयों को छुआ है, जिसे उम्र के आखिरी पड़ाव तक कोई न छू पाया।
आखिरी पड़ाव तक कोई न छू पाया।
मन में हौसला हो तो मंजिल दूर नहीं है। ऐसे हौसले और जुनून की कहानी है मधुसूदन की। उन्होंने अपने शौक को जिंदगी बना लिया और जज्बा ऐसा कि इस शौक को पूरा करने के लिए घर तक गिरवी रख दिया। मधुसूदन एवरेस्ट, साउथ अफ्रीका के माउंट किलिमंजारो, लद्दाख के कांग यत्स-1 और 2, डेजो गोंजो माथो शिखर, माथो डोम, माथो मैन, चोकुला-1, चोकुला-2 सहित कई ऊंचे पर्वतों पर चढ़ाई कर चुके हैं। एक माह में 10 से अधिक पर्वतों की ऊंचाइयों को छूने का कीर्तिमान भी उन्हीं के नाम है।
बचपन से बुलाते थे पहाड़
मधुसूदन ने बताया कि उसे शुरू से ही पहाड़ों पर चढऩे का शौक रहा है। घर की स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए पढ़ाई पर ध्यान दिया, लेकिन कुछ साल पहले ही एवरेस्ट फतह करने का ख्याल आया। पैसे नहीं थे, इसलिए घर गिरवी रख दिया। परिवार ने भी साथ दिया और एवरेस्ट पर चढ़ ही गया। मधुसूदन ने बताया कि मेरा लक्ष्य सेवन समिट पूरा करना है, इसलिए दूसरा लक्ष्य दक्षिण अफ्रीका की सबसे उंची पर्वत चोटी माउंट किलिमंजारो फतह करना थी। पैसों की कमी थी। इसके बाद परिचितों और संस्थाओं की मदद से यह मुकाम हासिल किया।
कम उम्र में पाया मुकाम
माउंट किलिमंजारो की चोटी तक पहुंचने के लिए मधुसूदन ने सबसे खतरनाक, वेस्टर्न ब्रिज के रास्ते को चुना। दुनिया में किसी ने इस रास्ते से चढ़ाई नहीं की थी। माउंट एल्ब्रस की ऊंचाई 5 हजार 642 मीटर है। मधुसूदन ने बताया कि आम तौर यहां चढ़ाई करने वालों को 8 से 9 दिन का समय लगता है। मैंने इसे 12 घंटे में ही पूरा कर लिया। अब तक कोई भी भारतीय पर्वतारोही इतने कम समय में इस चोटी पर नहीं चढ़ पाया है। इसके साथ ही मधुसूदन यूरोप की सबसे ऊंची इस पर्वत शृंखला पर चढऩे वाले सबसे कम उम्र पर्वतारोही भी बन गए हैं।
तूफान भी आया, तोड़ नहीं पाया इरादे
मधुसूदन ने बताया कि माउंट एल्ब्रस पर चढ़ाई के दौरान अधिकतर पर्वतारोही ऑक्सीजन की कमी होने पर एक ही जगह दो से तीन दिन तक रुकते हैं, ताकि एडजस्ट हो सकें। ऐसे में उन्हें 8 से 9 दिन लगते हैं। मैं इससे पहले माउंट एवरेस्ट और किलिमंजारो फतह कर चुका था, इसलिए मुझे मालूम है कि ऑक्सीजन लेवल कम होने पर किस तरह से चढ़ाई की जाती है। चढ़ाई के दौरान तूफान भी आया और मुझे लगा कि अब नीचे लौट जाना चाहिए। चार घंटे तक एक जगह पर रुका रहा, लेकिन फिर हिम्मत कर दोबारा चढ़ाई की और तिरंगा फहराकर ही नीचे आया। मधुसूदन बड़े पहाड़ों में एवरेस्ट, किलिमंजारो और एल्ब्रस की चढ़ाई कर अब दुनिया के सबसे खतरनाक पहाड़ अंटार्कटिक के विंसान मेसिफ की चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही सात सबसे ऊंचे ज्वालामुखियों पर चढऩे का लक्ष्य भी रखा है, जिसे भविष्य में पूरा करेंगे।
Published on:
11 Dec 2019 01:54 pm
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