
Meter gauge train
इंदौर/डॉ. आंबेडकर नगर (महू)। 1 जनवरी 1878। यह वह दिन है, जब महू रेलवे स्टेशन से पहली बार भांप के इंजन के साथ मीटरगेज ट्रेन का सफर शुरू हुआ था। लगातार 145 सालों तक महू से सरपट दौड़ने वाली इस छुक-छुक ट्रेन के सफर का सिलसिला 15 दशक बाद थम गया है। रतलाम मंडल का मीटरगेज ट्रेक मंगलवार को इतिहास हो गया। इस ट्रैक पर अंतिम ट्रेन ओंकारेश्वर से महू तक आई। ट्रेन में सैकड़ों यात्रियों ने सफर किया। ग्रामीणों ने लोको पायलेट और स्टाफ को माला पहनाकर धन्यवाद दिया। सोमवार को महू से रवाना हुई ट्रेन में मंगलवार सुबह 9.25 बजे ओंकारेश्वर स्टेशन से मीटर गेज के अंतिम सफर का साक्षी बनने सैकड़ों यात्री चढ़े। ट्रेन कालाकुंड पहुंची तो 6 कोच की ट्रेन का पॉवर बढ़ाने के लिए दूसरा इंजन लगाया गया। कई यात्री वीडियो बनाते रहे। ट्रेन 11.45 बजे महू पहुंची।
मीटरगेज बंद होने के बाद खुलेंगे कई रास्ते
ब्रॉडगेज ट्रेक का काम 145 साल पहले 3 अगस्त 1877 में पूरा हुआ था। अंग्रेजों ने चार साल में इसका काम पूरा कर दिया था। महू-खंडवा ट्रेक का सर्वे 1996 में शुरू हुआ, वर्ष 2008 में गेज परिवर्तन का काम शुरू हुआ जो अब तक जारी है। हालांकि महू सनावद का सर्वे अब तक पूरा नहीं हो पाया है जिसके कारण अभी लंबा समय लगेगा। ब्रॉडगेज का काम खत्म होगा तो इंदौर के रेल कनेक्टिविटी का नया सफर शुरू हो जाएगा।
होलकर काल की लाइन
1 जनवरी 1878 में पहली बार ट्रेन महू होते हुए इंदौर पहुंची थी। होलकर स्टेट रेलवे को इस 87 मील रेलवे लाइन बनाने में 8 साल का समय लगा। 12 स्टेशन के साथ कालाकुंड और महू में एक-एक इंजन शेड बनाए गए। अंग्रेजों ने इसका नाम राजपूताना मालवा-होलकर रेलवे रखा था। भांप इंजन को हाथियों से खींचकर लाए थे।
दर्जनों गांव की लाइफ लाइन मीटरगेज
आखिरी सफर के दिन ट्रेन में सवार यात्री भी रेल लाइन के बंद होने से भावुक हो गए। यात्री रामलाल ने बताया, इस ट्रेन से हर दिन आना-जाना रहता था। इस ट्रेन से हमारी कई यादें जुड़ी हुई। अब ट्रेन बंद होने से परिवहन की दिक्कत आएगी। राकेश कौशल ने बताया, यह ट्रेन चोरल और कालाकुंड से जुड़े दर्जनों गांव के लिए लाइफ लाइन थी। हर दिन पहाड़ी में बसे इन गांव के लोग इसी ट्रेन से सफर करते थे।
Published on:
01 Feb 2023 03:53 pm
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