
MP News (फोटो सोर्स: पत्रिका)
प्रदेश में शहरीकरण की रफ्तार बढ़ी है। शहरों से लगे ग्रामीण इलाकों तक मॉडर्न कॉलोनियां (Modern Colonies in MP) विकसित हो रही हैं। इससे शहरों का आकार तो बदल रहा है, सरकारी मशीनरी की अनदेखी ही विकास में रोड़ा बन रही है।
सरकार ने पंचायत क्षेत्र में विकसित होने वाली कॉलोनियों से आश्रय निधि लेने का नियम तो बनाया, लेकिन विकास पर खर्च या जमा राशि के उपयोग के नियम ही नहीं बनाए। नतीजा, 2014 से जिला पंचायतों (District Panchayat) के खाते में इन कॉलोनियों से आने वाली राशि जमा हो रही है। लेकिन ये राशि खर्च नहीं हो रही। आलम यह है कि महज इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में ही करोड़ों रुपए जमा हैं। अकेले इंदौर जिला पंचायत के खाते में ही 150 करोड़ से भी अधिक रुपए पड़े हैं।
इंदौर में बड़े पैमाने पर आसपास की पंचायतों में कॉलोनियां कट रही हैं और ये सिलसिला डेढ़ दशक से जारी है। एक हजार से अधिक कॉलोनियों का निर्माण हो चुका है। उज्जैन रोड पर सांवेर, खंडवा रोड पर सिमरोल, देवास रोड पर मांगलिया, महू में मानपुर और धार रोड पर बेटमा तक कॉलोनियां कट रही हैं और मकान बन रहे हैं। बड़े पैमाने पर यहां बसाहट हो गई है। आश्रय निधि के रूप में जिला पंचायत के पास 150 करोड़ रुपए से अधिक जमा हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में कॉलोनी काटने पर कॉलोनाइजर को विकास अनुमति लेने से पहले जमीन की गाइडलाइन का 6% आश्रय निधि के रूप में जिला पंचायत को जमा करना होता है। साथ ही विकास की लागत का 5 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से लिए जाते हैं। रो हाउस बनाने पर 10 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर लिया जाता है।
इंदौर: जिले में 323 पंचायतें हैं। जिला पंचायत के पास आश्रय निधि के 150 करोड़ से ज्यादा जमा हैं। सभी पंचायतों में बराबर बांटे जाएं तो हर पंचायत को 46.43 लाख मिलेंगे। आबादी के हिसाब से बांटे तो 25-75 लाख रुपए मिलेंगे। इसमें विधायक-सांसद निधि मिलाकर गांवों में बड़े विकास कार्य हो सकते हैं।
भोपाल: जिले में 202 पंचायतों में 614 गांव हैं। शहर से लगी अचारपुरा, बरखेड़ा नाथू, गोल, ईंटखेड़ी छाप, कालापानी, खजूरी, मेंडोरी जैसी पंचायत में खूब कॉलोनियां कटी हैं। यहां आश्रय निधि पंचायतों में बंटे तो गांवों की सूरत बदलेगी।
स्थिति...भोपाल-इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और उज्जैन समेत तकरीबन हर शहर से लगे ग्रामीण इलाकों में नई कॉलोनियां बस रही हैं।
● नियम...मप्र ग्राम पंचायत कॉलोनाइजरों को कॉलोनियों के विकास से पहले मप्र ग्राम पंचायत (कॉलोनियों का विकास) नियम-2014 के तहत अनुमति लेनी होती है। एक आश्रय निधि, दूसरा अतिरिक्त आश्रय निधि। आश्रय निधि इसलिए कि भविष्य में ग्रामीण क्षेत्र का विकास कराया जा सके।
● अड़चन... आश्रय निधि जिला पंचायतों के खाते में जमा होने लगी। लेकिन नियम बनने के 11 साल बाद भी राशि खर्च करने का नियम नहीं बना। इससे राशि खर्च नहीं हुई और इससे गांवों का कायाकल्प ठहर गया।
आश्रय शुल्क के अलावा सरकार ने कॉलोनाइजरों को विकल्प भी दिया है। इसके तहत आर्थिक कमजोर व निम्न आय वर्ग के लिए प्लॉट या भवन बनाकर देने के प्रावधान हैं। लेकिन अधिकतर कॉलोनाइजर को यह पसंद नहीं है। वे आश्रय निधि जमा कराना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
Published on:
16 Jun 2025 09:50 am
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