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पहले तांगे-बग्घी में प्रचार करना पसंद करते थे प्रत्याशी, 50 रुपए में पूरे दिन घूमते थे

Assembly Elections 2023- गली में तांगा जाते ही बच्चों के खिल जाते थे चेहरे, हाईटेक चुनाव प्रचार में खो गया वह दौर

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mp election 2023

इंदौर। वह भी क्या दौर था, जब चुनाव प्रचार के लिए इंदौर में तांगों का इस्तेमाल होता था। इनकी मांग सबसे अधिक होती थी। शहर में लगभग 500 तांगे थे, जो चुनाव तारीख घोषित होने के पहले ही बुक हो जाते थे। 50 रुपए में पूरे दिन तांगा संचालक उस क्षेत्र के प्रत्याशी समर्थक को बैठाकर घूमते थे। चिलम लगे हुए तांगे, जब मोहल्लों में जाते तो बच्चों के चेहरे पर अलग ही खुशी देखते बनती थी। बच्चे प्रचार के कारण फ्री में तांगों पर सवारी का आनंद लेते थे।

युवा, बुजुर्ग और महिलाएं घरों से बाहर निकलकर अनाउंसमेंट सुनने को उत्सुक नजर आते थे। अब वह दौर टेक्नोलॉजी की बयार में खो गया है। शहर में तांगे भी नहीं बचे। राजबाड़ा पर सिर्फ एक तांगा स्टैंड है, जहां बच्चों को घुमाने के लिए एक तांगा अभी भी रहता है। यह कहना है कड़ावघाट निवासी 72 वर्षीय भेरू लाल राठौर का। वे तांगा यूनियन के अध्यक्ष हैं।

राठौर ने बताया, एक दौर था जब तांगे-बग्घी में प्रचार करना प्रत्याशी पसंद करते थे। चुुनाव का वह दौर हर तांगा संचालक के लिए आर्थिक लिहाज से अच्छा रहता था। अब समय बदल चुका है। अधिकांश लोगों ने तांगा चलाना छोड़ ऑटो रिक्शा खरीद लिए। जो बचे हैं, वह अब शादी समारोह, सभा, आयोजनों में सेवा दे रहे हैं। जब भी चुनाव आता है तो पुराना माहौल याद आ जाता है।

ढोल-ताशों का बढ़ा क्रेज

मोती तबेला निवासी प्रदीप बोराड़े ने बताया, पीढ़ियों से ढोल व बैंड का काम कर रहे हैं। पहले एक बैंड के साथ पांच से छह लोग जाते थे। तब दो से ढाई हजार रुपए में एक दिन में प्रचार होता था। अब लगभग 10 से 12 लोगों की पार्टी रहती है। पहले की तुलना में डिमांड बढ़ी है। पहले एक से डेढ़ माह तक पार्टियां बुकिंग रखती थीं, अब आचार संहिता के कारण आखिरी के 10 से 15 दिन ही बिजनेस मिलता है।

सोशल मीडिया ने डाला असर

हरसिद्धी निवासी राजेश ने बताया, 15 वर्ष की उम्र से ढोल ताशे का व्यवसाय कर रहा हूं। पहले चुनाव में ऑर्डर मिलते थे, इस वर्ष अभी तक चुनाव की बुकिंग नहीं आई है। सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से ढोल-ताशे के व्यापार पर असर पड़ा है।

हाईटेक हो गया प्रचार

मोबाइल और इंटरनेट के दौर में प्रचार के तरीके भी पिछले एक दशक से काफी बदल चुके हैं। स्थानीय स्तर पर कलाकारों से छोटे-छोटे नाटक बनवाकर उसे सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म पर डाला जाता है। साथ ही बल्क मैसेज या प्रचार संबंधित पोस्टर सीधे वाट्सऐप ग्रुप पर पहुंच जाते हैं। कई प्रत्याशियों ने गायकों को भी चुनाव प्रचार संबंधित गानों के लिए संपर्क किया है। आटो के माध्यम से भी प्रचार की तैयारी है।