
जस्टिस दुप्पला वेंकट रमण की फेयरवल स्पीच। फोटो- YT/ HIGH COURT OF MADHYA PRADESH
MP News: मध्यप्रदेश के इंदौर हाईकोर्ट के जस्टिस दुप्पला वेंकट रमण का मंगलवार को विदाई समारोह था। उन्होंने अपने विदाई समारोह में कहा कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मेरा ट्रांसफर मुझे परेशान करने के लिए किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने अगस्त 2023 में आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट के जस्टिस दुप्पला वेंकट रमण के ट्रांसफर पर प्रस्ताव रखा था।
उन्होंने बताया कि ट्रांसफर प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया और इसकी जगह कर्नाटक हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की। कॉलेजियम ने उनके अनुरोध पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और एमपी हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी जज के रूप में ट्रांसफर करने निर्णय अटल रखा।
आगे जज रमना ने बताया कि मेरा ट्रांसफर आंध्र प्रदेश से एमपी हाईकोर्ट बिना किसी कारण के किया गया था। मुझसे कई विकल्प मांगे थे। विकल्प के तौर पर मैंने मेरी पत्नी के बेहतर इलाज के लिए कर्नाटक राज्य चुना था। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पुनर्विचार नहीं किया। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की तबियत खराब होने के कारण उन्होंने कर्नाटक ट्रांसफर करने की मांग की थी।
जस्टिस रमण ने कहा कोरोना महामारी के बीमारी से पीड़ित थी। उस दौरान मुख्य न्यायाधीशों के द्वारा मेरे ट्रांसफर पर न तो विचार किया गया न ही इसे खारिज। मुझे जज से सकारात्मक विचार की उम्मीद थी। मैं इस रवैए से काफी दुखी और नाराज हुआ। मेरे ट्रांसफर का आदेश दुर्भावनापूर्ण इरादे से जारी किया गया। भगवान न तो आसानी से भूलते हैं और न ही क्षमा करते हैं। वह किसी और रुप में दर्द सहेंगे। कोई भी हमेशा पद पर नहीं रहता। हालांकि, मेरे भाग्य के अनुसार यह चीज अभिशाप की जगह मेरे लिए वरदान साबित हुई। मुझे जबलपुर और इंदौर के जजों का अपार समर्थन और सहयोग मिला।
अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए जस्टिस रमना ने कहा मेरी जीवन यात्रा एक दूरदराज के गांव में शुरू हुई। जहां बिजली, सड़क, मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलती थीं। पहली बार जब मैं 14 साल का था तब बिजली तब देखी थी। 13 साल की उम्र में मेरे पिता की हार्नेस में मृत्यु हो गई। मुझे मेरी मां और भाई ने पाला। उन्होंने मुझे पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। जीवन में कई चुनौतियों का सामना करने के बाद महसूस किया कि कड़ी मेहनत के अलावा सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है।
जस्टिस रमण ने बताया कि उनका ट्रांसफर उन्हें परेशान करने के लिए किया गया था। मगर मैंने इसका उल्ट जवाब दिया। मैंने दोनों राज्यों में आंध्र प्रदेश और मध्यप्रदेश में स्थायी योगदान दिया। मुझे अमरावती, कृष्णा, गोदावरी और नर्मदा की भूमि में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन अवसरों के लिए मैं धन्य हूं।
मैंने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया और महसूस किया कड़ी मेहनत के अलावा सफलता को कोई दूसरा शॉर्टकट नहीं है। मेरे करियर में संघर्ष और कड़वे अनुभवों ने मेरी गतिविधियों को विविधता प्रदान करने में मदद की। जिस दिन मैंने न्यायिक सेवा में प्रवेश किया। इस पद तक पहुंचने के लिए। मुझे षड्यंत्रपूर्ण जांच के अधीन किया गया। मेरा परिवार और मैं इस पीड़ा के सहते गए। लेकिन, हमेशा अंत में सत्मेव जयते यानी सत्य की जीत होती है।
जज ने कहा मुझे मार्टिन लूथर किंग जूनियर की कुछ लाइनों याद हैं। जिसमें वह कहते हैं कि कि एक व्यक्ति की अंतिम कसौटी यह नहीं है कि वह आराम और सुविधा के क्षणों में कहां खड़ा है। बल्कि यह कि वह विवाद और चुनौतियाँ के समय कहां पर खड़ा है। मैंने जो कुछ भी जीवन में कुछ हासिल किया है। वह बहुत संघर्षपूर्ण था।
जज ने कहा कि मैंने अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों को स्वीकार किया और खुद को और मजबूत बनाया। मैंने समझा कि हर सफलता में लाभ का एक बीज होता है। मैंने कभी खुद को विद्वान जज या महान जज होने का दावा नहीं किया, लेकिन मैंने हमेशा माना कि न्याय पालिका प्रणाली का अंतिम उद्देश्य आम आदमी को न्याय प्रदान करना है।
Updated on:
20 May 2025 07:13 pm
Published on:
20 May 2025 07:10 pm
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