6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

टूटते परिवारोंं से जूझते बुजुर्गों के हालात को बखूबी किया बयां

संस्था नटराज और अनवरत थिएटर ग्रुप ने नाटकों के माध्यम से दी सीख

2 min read
Google source verification

इंदौर

image

Ramesh Vaidh

Mar 28, 2024

टूटते परिवारोंं से जूझते बुजुर्गों के हालात को बखूबी किया बयां


नाटक: बली और शंभू
मंच पर: अमन चौधरी, आशीष उजीवाल, निष्ठा मौर्य, कोमल सिसोदिया, प्रमीत वर्मा, संजय
निर्देशक: निष्ठा मौर्य
संगीत: अर्जुन नायक
इंदौर. अभिनव कला समाज सभागार में संस्था नटराज और अनवरत थिएटर ग्रुप ने नाटकों का मंचन किया। संस्था नटराज थिएटर ग्रुप एंड एंड फिल्म प्रोडक्शन ने नाटक बली और शंभू और संस्था अनवरत थिएटर ग्रुप नें एकल नाटक 'पॉपकॉर्न विद परसाई' का मंचन किया। नाटक ने बुढ़ापे के अकेलेपन और बेचारगी को दिखाने के साथ-साथ बुजुर्गों के दिल में पनपने वाली इच्छाओं और उम्मीदों को बहुत ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया। नाटक दो बुजुर्ग शंभू और बली की दास्तान है, जो विपरीत हालात से जूझते हुए एक

वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। शंभू अपनी मृत बेटी तितली की याद में खोया रहता है जबकि बली वृद्धाश्रम की डॉ. के कथित प्रेम में पढक़र हास्यास्पद हालातों को जन्म देता है।

शंभू वृद्धाश्रम के अपने कमरे में अकेला रहता है, लेकिन उस कमरे के दूसरे बेड पर जब बली का आना होता है तो उसे परेशानी होती है। वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता,जब उसे पता चलता है कि उसके और बली के हालात एक जैसे हैं, तो उसे बली से हमदर्दी होने लगती है। यही नहीं, कुछ दिनों पश्चात तो वे दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ जाते हैं कि अपने दिल की बातें और
अपने घर के हालात भी साझा करने लगते हैं। नाटक वर्तमान दौर में टूटते पारिवारिक परिवेश व परिवारों के दूर होने से जूझते बुजुर्ग लोगों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को उजागर करने वाला है।

नाटक - 'पॉपकॉर्न विद परसाई'
मंच पर - विजय पयासी
निर्देशक - नीतेश उपाध्याय
संगीत - समर्थ जैन
यह नाटक परसाई जी के व्यंग्यों को मिलाकर लिखा गया है, जिसमें दर्शक गुदगुदाएं भी और गंभीर भी हो गए। जीवन का शायद ही कोई ऐसा आयाम होगा जिसे परसाई जी ने अपने व्यंग्य में नहीं छुआ हो। दर्शकों के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से परसाईजी की सरल सच्चाइयां सामने आती हैं, क्योंकि वह एक विचित्र विचार को समझाने की कोशिश करते हैं। वह क्यों सोचते हैं कि पॉपकॉर्न ने भारत की संस्कृति और समय को बर्बाद कर दिया है। लेखन की चुभने वाली शैली के लिए प्रसिद्ध, यह एकल नाटक उनके पूरे दिल से किए कार्यों, नैतिक तरीकों को प्रदर्शित करता है। अभिनेता विजय पयासी नाटक को नए स्तर पर ले जाते हैं, वह नाटक को मनोरंजक के साथ-साथ विचारोत्तेजक भी बनाते हैं। यह नाटक कोई तकनीक नहीं, बल्कि इसमें बताया गया है कि जीवन भी एक नाटक, हास्य और व्यंग्य से भरपूर है।