
इंदौर। कोरोनाकाल के पहले स्कूली बच्चों को एंड्राइड मोबाइल देने से पालक परहेज करते थे, लेकिन अब ऑनलाइन पढ़ाई के जमाने में यह जरूरत बन गया है। पढ़ाई व अन्य जरूरी काम के लिए मोबाइल हाथ में आते ही युवा ऑनलाइन गेम के भंवर में फंस जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों की ऑनलाइन निगरानी कर पालक उन्हें गेम के भंवर में फंसने से बचा सकते हैं।
पबजी गेम के चक्कर में करीब तीन साल पहले एक युवक ने छत से कूदकर जान दे दी थी। इसके बाद एक नाबालिग भी छत पर चढ़ा, लेकिन लोगों ने बचा लिया। चंदन नगर पुलिस की काउंसलिंग में पता चला कि गेम का टास्क पूरा करने के लिए वह बिल्डिंग की छत पर चढ़ गया था। हाल ही में एक युवती ने इसलिए जान दे दी कि परिवार उसे ऑनलाइन गेम से दूर रखने की कोशिश कर रहा था। गेम के चक्कर में 3 साल में 4 बच्चों की जान जा चुकी है।
एक मामले में परिजन की सक्रियता से 17 वर्षीय किशोरी को फंदे से उतारकर अस्पताल पहुंचाया गया तो उसकी जान बची। पुलिस कमिश्नर हरिनारायणाचारी मिश्र ने गेम के कारण जान देने की घटनाओं को देखते हुए अब स्कूल-कॉलेजों में जागरुकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं। पुलिस टीम बच्चों के बीच जाकर उन्हें गेम के खतरे से सजग रहने की सीख देगी।
निगरानी ही बच्चों को बचाने का उपाय
साइबर विशेषज्ञ चातक वाजपेयी के मुताबिक, बच्चे परिवार से छिपकर ऑनलाइन गेम खेलते हैं। चाइल्ड मॉनिटरिंग ऐप्लीकेशन के जरिये नजर रख सकते हैं। बच्चा कहां जा रहा है, किससे बात कर रहा, किससे चैटिंग हो रही है, आदि के साथ लोकेशन भी ट्रेस कर सकते हैं।
स्क्रीन टाइमिंग का रखें ध्यान
डीसीपी क्राइम निमिष अग्रवाल के मुताबिक, बच्चे कब ऑनलाइन गेम के भंवर में फंस जाते हैं, पता ही नहीं चलता है। पालकों को उनकी स्क्रीन टाइमिंग पर नजर रखनी होगी। ज्यादा देर मोबाइल में व्यस्त न रहने दें। मोबाइल को पासवर्ड के जरिए भी प्रोटेक्ट करें। आर्थिक लेन-देन बच्चों से कराने के बजाए खुद करें।
Updated on:
15 Jun 2022 08:58 am
Published on:
15 Jun 2022 08:55 am
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