
इंदौर. नगर निगम ने शहरवासियों के मोबाइल नंबर, ईमेल नंबर आदि जानकारी असुरक्षित कर दी। निगम ने राज्य सरकार के आदेश पर जिस कंपनी को आईटी से जुड़ी व्यवस्थाएं सौंपी थीं, उसने अपना काम आउटसोर्स कर अन्य कंपनी को जिम्मेदारी दी।
उस कंपनी ने भी तीसरी कंपनी को शहरवासियों की जानकारी सौंप दी है। इस कंपनी में सालभर में लगभग दो दर्जन लोग बदल चुके हैं, जिनके पास शहरवासियों का डाटा सॉफ्ट कॉपी में निगम ने उपलब्ध करवाया था।
पूरे प्रदेश के नगरीय निकायों का कम्प्यूटरीकरण करने के लिए राज्य सरकार ने ई-नगर पालिका योजना शुरू की थी। इसमें प्रदेश में भोपाल से ही सारे नगर निगम को कम्प्यूटर के जरिए जोड़ा जाना था। इसका ठेका सरकार के स्तर पर यूएसपी ग्लोबल कंपनी को दिया गया था। कंपनी ने अपना सॉफ्टवेयर सरकार को मुहैया तो करवा दिया लेकिन, इसे लागू करने के लिए एबीएम नॉलेजवेयर कंपनी को आउटसोर्स कर दिया।
इस कंपनी ने भी एक अन्य कंपनी को इंदौर नगर निगम सहित सभी नगरीय निकायों से डाटा लेकर सॉफ्टवेयर में डालने का काम दे दिया, जिसने इंदौर में 25 से ज्यादा कर्मचारी-अफसर नियुक्त किए। ये लोग कुछ दिन बाद नौकरी छोड़ गए। इन्हें निगम ने पूरे शहरवासियों के संपत्तिकर, जलकर, लाइसेंस व निगमकर्मियों का पूरा डाटा ई-मेल और सॉफ्ट कॉपी में उपलब्ध करवाया था।
शहरवासियों को ऐसे आ सकती है दिक्कत
निगम छह वर्षों से संपत्तिकर, जलकर, लाइसेंस जमा करने वालों से उनका मोबाइल नंबर और ई-मेल आईडी मांगता रहा है, जो योजनाओं और करों को लेकर फीडबैक देने के लिए हैं। ये सारा डाटा कंपनी से नौकरी छोड़ चुके कर्मचारियों के पास है, जो गलत हाथों में पडऩे का खतरा है।
निगम को भी आ रही दिक्कत
वहीं निगम को भी तीन-तीन कंपनियों के कारण दिक्कत आ रही है। फरवरी 2016 में ई-नगर पालिका सॉफ्टवेयर लागू करने के लिए पहली बार यूएसपी ग्लोबल कंपनी ने इंदौर में एबीएम नॉलेजवेयर के साथ काम शुरू किया था। लेकिन तीसरी कंपनी के कर्मचारी बार-बार छोडऩे के कारण डाटा पूरी तरह सॉफ्टवेयर में लोड नहीं हो पाया है।
निगम के अफसर किसी काम के लिए कंपनी को बोलते हैं तो वो ये कहकर टाल देते हैं कि ये काम डाटा कलेक्शन करने वाली कंपनी या सॉफ्टवेयर लागू करने वाली कंपनी का है। तीनों कंपनियों के बीच निगम व्यवस्था घूम रही है। इससेसॉफ्टवेयर पर काम ही शुरू नहीं हो पाया है।
निगम पहले भी खो चुका है रिकॉर्ड
नगर निगम ने सबसे पहले खातों के कम्प्यूटरीकरण का काम ओसवाल डाटा कंपनी को दिया था। 2006 में गतिरोध के चलते कंपनी ने निगम का पूरा डाटा व निगम के अन्य विभागों की पूरी जानकारी नहीं दी थी। निगम ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर तक करवाई थी, किंतु उसने डाटा नष्ट होने की बात कहकर निगम को उपलब्ध नहीं करवाया था। इसके बाद निगम को पुराना रिकॉर्ड वापस बनाने में दो साल लगे थे।
हमारा ई-नगर पालिका से जुड़ा काम सामान्य तरीके से चल रहा है। निगम का डाटा पूरी तरह सुरक्षित है। इसमें किसी तरह की कोई घटना नहीं हो पाएगी।
-संतोष टैगोर, अपर आयुक्त (आईटी), नगर निगम
Published on:
21 Nov 2017 09:55 am
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