
देश में पहली बार ग्रेविटेशनल वेव्स यानी गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों को मापने वाला वर्ल्ड क्लास साइंस प्रोजेक्ट ले रहा आकार, आरआरकैट की नई तकनीक खोलेगी ब्रह्मांड की रहस्यमयी दुनिया के राज. (फोटो सोर्स: सोशल मीडिया)
MP News: देश में पहली बार ग्रेविटेशनल वेव्स यानी गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों को मापने वाला वर्ल्ड क्लास साइंस प्रोजेक्ट आकार ले रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रोजेक्ट में राजा रामन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी (RRCAT) की अहम भूमिका है। इस प्रोजेक्ट के तहत महाराष्ट्र के हिंगोली में विश्व स्तरीय ग्रेविटेशनल वेव डिटेक्शन सेंटर (World Class Gravitational Wave Detection Centre) बनाया जा रहा है।
इसमें लेजर इंटरफेरोमीटर तकनीक से ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का अध्ययन (Study of cosmic gravitational waves) करेंगे, जो ब्रह्मांड के रहस्य समझने (the secrets of the universe will be revealed) में भारत को अग्रणी बनाएगा।
यह बात आरआरकैट के पूर्व निदेशक डॉ. शंकर नाखे ने बातचीत में कही। वह इंडियन सोसाइटी ऑफ लाइटिंग इंजीनियर्स के कार्यक्रम में भाग लेने आए थे।
लायगो इंडिया अत्याधुनिक वैज्ञानिक वेधशाला (ऑब्जर्वेटरी) होगी, जो ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों को डिटेक्ट करेगी। इन तरंगों का सिद्धांत वर्ष 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपनी ‘जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी’ में दिया था। पहली बार इनका वास्तविक डिटेक्शन 2015 में अमरीका में हुआ, लेकिन अब भारत भी इस विज्ञान में अग्रणी देशों की पंक्ति में शामिल होने के लिए काम कर रहा है।
डॉ. नाखे ने बताया कि आरआरकैट इस पूरे प्रोजेक्ट का नेशनल कोऑर्डिनेटर है। प्रोजेक्ट की तकनीकी जरूरतों जैसे लेजर सोर्स तैयार करना, डिटेक्टर की डिजाइनिंग और हाई-प्रिसीजन टेक्नोलॉजी के विकास में आरआरकैट की बड़ी भूमिका है। अमरीका से कुछ जरूरी उपकरण आएंगे, लेकिन लाइगो इंडिया की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि इसका सिविल इन्फ्रास्ट्रक्चर, वैक्यूम सिस्टम, इंस्टालेशन व कमीशनिंग भारत में ही विकसित की जा रही है। इसके एडवांस वर्जन में उपयोग होने वाली तकनीक भी देश में ही तैयार होगी।
यह प्रोजेक्ट भारत सरकार के एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट और साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के संयुक्त तत्वावधान में संचालित हो रहा है। चार प्रमुख संस्थान आरआरकैट, डिपार्टमेंट ऑफ कंस्ट्रक्शन, सर्विस एंड मेंटेनेंस (डीसीएसीएम), इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज़्मा रिसर्च (आइपीआर) और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे जुड़े हैं।
1. गुरुत्वाकर्षणीय अनुसंधान में अग्रणी स्थान : अभी अमरीका में दो लाइगो लैब हैं। भारत में तीसरी वैधशाला बनने से खगोलीय घटनाओं की ज्यादा सटीक जानकारी मिलेगी।
2. फंडामेंटल फिजिक्स में योगदान : ब्रह्मांड की उत्पत्ति, ब्लैक होल्स, न्यूट्रॉन स्टार्स जैसी रहस्यमयी घटनाओं को समझने में भारत का योगदान बढ़ेगा।
3. तकनीकी विकास व आत्मनिर्भरता : भारत के युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अत्याधुनिक तकनीक पर काम करने का मौका मिलेगा।
4. वैज्ञानिक प्रशिक्षण का केंद्र : यह केंद्र आने वाले समय में उन्नत अनुसंधान व विज्ञान शिक्षा का अंतरराष्ट्रीय हब बन सकता है।
डॉ. नाखे के अनुसार, सब कुछ योजना अनुसार चला तो प्रोजेक्ट 2030 तक पूरी तरह कार्यशील हो जाएगा। ग्रेविटेशनल वेव्स की डिटेक्शन प्रक्रिया बहुत सूक्ष्म होती है। यह प्रोटोन से भी एक हजार से 10 हजार गुना छोटी हलचल को मापने की क्षमता रखता है।
Published on:
28 Jul 2025 11:45 am
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