
dead bodies
इंदौर। अक्सर आपने देखा होगा कि अंतिम संस्कार में केवल पुरुष ही शामिल होते हैं, जबकि महिलाओं का श्मशान घाट में जाना वर्जित होता हैं। मान्यता है कि श्मशान घाट में दाह संस्कार के बाद भी कुछ आत्माओं को शांति नहीं मिलती। मान्यता यह भी है कि अंतिम संस्कार के दौरान घर में नकारात्मक शक्तियां हावी रहती हैं जो स्त्रियों पर ज्यादा जल्दी हावी हो जाती हैं। इसलिए भी महिलाओं का श्मसान में जाना उचित नहीं माना जाता। लेकिन इंदौर को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने के अभियान में जुटी संस्था प्रवेस की अध्यक्ष रूपाली जैन इन सभी मान्यताओं से इतर, लावारिस और परिवार द्वारा त्यागे गए मृतकों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। श्मशान में पूरे रीति-रिवाजों से उन्हें मुखाग्नि दे रही हैं तो कब्रिस्तान में उन्हें मिट्टी देने की रस्म भी निभा रही हैं।
हिंदू रीति रिवाज से दी मुखाग्नि
रूपाली जैन बताती है पिछले दिनों रेलवे स्टेशन के सामने वाले मंदिर के बाहर एक भोला नाम के बुजुर्ग लकवाग्रस्त हालत में मिले। उन्हें रेस्क्यू करने के बाद इलाज के लिए अरबिंदो अस्पताल भेजा गया। वहां डॉक्टरों ने उनकी जांच करने के बाद बताया कि ब्रेन में बड़ा ट्यूमर है। ऑपरेशन करना होगा, लेकिन उसमें भी रिस्क है। उसके बाद मैंने कंसर्न लेने के बाद उनके ऑपरेशन की तैयारी की। उन्हें ऑपरेशन थिएटर तक भी ले जाया गया लेकिन ऑपरेशन से पहले ही उनकी मौत हो गई। 28 दिसंबर को हुई मौत के बाद कानूनी के हिसाब से भोला का शव तीन दिन तक एमवाय अस्पताल की शवगृह में रखना जरूरी था।
तीन दिन के बाद उस शव को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार करने का समय आया तो साल का पहला दिन था। आमतौर पर लोग इस दिन नकारात्मक चीजों, अंतिम संस्कारों में जाने से बचते हैं। लेकिन रूपाली जैन ने इस मान्यता को भी सिरे से खारिज करते हुए साल के पहले दिन हिंदू रीति रिवाज से जूनी इंदौर मुक्तिधाम में भोला के शव को मुखाग्नि दी।
मुखाग्नि दी लावारिस शव को श्मशान पहुंचकर
यह कोई पहला मौका नहीं था जब रूपाली ने किसी लावारिस शव को श्मशान पहुंचकर मुखाग्नि दी हो। बल्कि भिक्षावृत्ति मुक्त इंदौर अभियान के तहत उन्होंने यह संकल्प लिया है कि जिन भिक्षुकों को तमाम प्रयासों के बाद भी बचाया नहीं जा सकेगा, वे उनका अंतिम संस्कार उनके धर्म के हिसाब से प्रत्येक रीति-रिवाज का पालन करते हुए करेंगी।
इसी संकल्प के चलते रूपाली ने यह पंद्रहवां अंतिम संस्कार किया है। इसके पहले 1 मार्च 2022 से लेकर अब तक उन्होंने तेजराम चौहान, आशीष, कमलकिशोर, बालकिशन, रमेश माधव राव, देवीप्रसाद चौरसिया, दुर्गा शर्मा, गंगाराम, फैजल खान, कैलाश, कमला बाई, नन्हीं बाई, अर्जुन नाथ और अंजलि की मृत्यु के बाद उनके शवों का अंतिम संस्कार भी पूरे रीति-रिवाज से किया है।
Published on:
03 Jan 2023 06:12 pm
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