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DoT को लगाई थी फटकार, फिर की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम को डांट लगाते हुए पूछा था कि आखिर विभाग ने भुगतान ना करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई ना करने का नोटिफिकेशन जारी किया कैसे? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विभाग में बैठा डेस्क अधिकारी अटॉर्नी जनरल और अन्य संवैधानिक प्राधिकरणों को पत्र लिखकर कैसे बोल सकता है कि टेलीकॉम कंपनियों पर भुगतान के लिए जोर नहीं दिया जाना चाहिए। क्या सरकारी विभाग का अफसर सुप्रीम कोर्ट से भर बड़ा हो गया है? अगर ऐसा है तो कोर्ट को बंद कर दीजिए। कोर्ट ने परेशानी भरे लहजे में कहा कि एजीआर मामले में समीक्षा याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके बाद भी एक भी पैसा जमा नहीं हुआ। देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गई है।
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नहीं थी केंद्रीय मंत्री और सचिव को जानकारी
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जो बात सामने आई है वो बेहद चौंकाने वाली हैै। दूरसंचार विभाग का एजीआर बकाए के भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का आदेश दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद और सचिव की सहमति के बिना जारी किया गया था। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले ने ना तो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को जानकारी थी, ना ही सचिव को। यह कोई नई बात नहीं कि कई विभागों के अधिकारी संबंधित विभाग के मंत्री को बिना बताए आदेश जारी कर देेते हैं, लेकिन जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन बेंच की पीठ सुनवाई कर रही हो और उसने एजीआर मामले में सख्त रुख अपना रखा हो, तो क्या केंद्रीय मंत्री को ऐसे मामलों में आंख, नाक, कान खोलकर नहीं रखनी चाहिए। इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद मौजूदा सरकार कानून मंत्री भी है। वो अच्छे से जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए का नुकसान किस तरह से उठाना पड़ सकता है।
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अब दिए कार्रवाई के आदेश
दूरसंचार विभाग ने समय पर बकाया राशि ना लौटाने को लेकर दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई ना करने को लेकर जारी किया आदेश वापस ले लिया है। वहीं कंपनियों को तुरंत बकाया रकम चुकाने का आदेश जारी कर दिया है। वहीं दूसरी ओर मंत्रालय ऐसे अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है, जिन्होंने कोर्ट के फैसले के खिलाफ आदेश दिया था। अगर एजीआर मामले में सरकार की आंखे खुली होती, संबंधित मंत्री सतर्क और चौकस रहते तो सरकार और विभाग को सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस तरह की फटकार नहीं झेलनी पड़ती।