जबलपुर। गौरवशाली गढ़ मंडला का गोंडवाना साम्राज्य, आज भी संस्कारधानी गोंडवाना शासकों की वीरता और उनके द्वारा किए गए कार्यों से समृद्ध है। ठीक ऐसे ही दो वीर इस वंश के रहे हैं जिनकी वीरता के गीत 18 सितंबर को एक बार फिर गाए जा रहे हैं। तोप के सामने किसी को जिंदा बांधकर उसके चीथड़े उड़ा देना अंग्रेजों के लिए नई बात नही थी लेकिन मौत के सामने भी अपनी कविताओं के जरिए लोगों में क्रांति की भावना भरना संभवत: इन्हीं के लिए संभव था। आज हम राजा रघुनाथ शाह, शंकरशाह बलिदान दिवस पर एक ऐसे ही किस्से के बारे में यहां बताने जा रहे हैं...
-1857 ई0 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था। यह देखकर गोंडवाना (वर्तमान जबलपुर) के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों का विरोध करने का निर्णय लिया।
-राजा एवं राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे। उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी।
-राजा ने एक भ्रष्ट कर्मचारी गिरधारीलाल दास को निष्कासित कर दिया था। वह क्लार्क को अंग्रेजी में इन कविताओं का अर्थ समझाता था। क्लार्क समझ गया कि राजा किसी विशाल योजना पर काम रहा है। उसने हर ओर गुप्तचर तैनात कर दिये। कुछ गुप्तचर साधु वेश में महल में जाकर सारे भेद ले आये। उन्होंने क्लार्क को बता दिया कि दो दिन बाद छावनी पर हमला होने वाला है।
-क्लार्क ने आक्रमण के सबसे अच्छी सुरक्षा वाले नियमानुसार 14 सितम्बर को राजमहल को घेर लिया। राजा की तैयारी अभी अधूरी थी, अत: धोखे के चलते राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिये गये।
-जबलपुर शहर में अब भी वह स्थान है जहां पिता-पुत्र को मृत्यु से पूर्व बंदी बनाकर रखा गया था वर्तमान में ये डीएफओ कार्यालय है।
-18 सितम्बर, 1858 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुंह पर बांध दिया गया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एकएक छन्द सुनाया। पहला छन्द राजा ने सुनाया और दूसरा उनके पुत्र ने-
मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका ।।
दूसरा छन्द पुत्र ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।
कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन
डार मुण्डमाल गरे खड्ग कर धर ले...।
-छंद पूरे होते ही जनता में राजा एवं राजकुमार की जय के नारे गूंज उठे। इससे क्लार्क डर गया। उसने तोप में आग लगवा दी। भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआं भर गया। और महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह वीरगति को प्राप्त हो गए।