
chanakya niti in hindi
जबलपुर। वैसे तो आधुनिक युग में पुरातन परंपराएं और बातें लोगों को अच्छी नहीं लगती हैं और न इसका पालन करना वे जरूरी समझते हैं। किंतु भारतीय शास्त्र और उसके ज्ञाताओं ने जो बातें सदियों पहले कहीं थीं वे आज भी शत प्रतिशत लागू होती हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. सत्येन्द्र स्वरूप शास्त्री का कहना हे कि एक ऐसे ही महान विचारक और ज्ञाता चाणक्य इस देश में हुए थे। उनके द्वारा कहा गया हर वाक्य आधुनिक अर्थव्यवस्था से लेकर जीवनशैली में आज भी अकाट्य सत्य है। चाणक्य नीति में स्पष्ट लिखा है -
धनधान्यप्रयोगेषु विद्वासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
इसका अर्थ है कि धन से संबंधित कोई भी काम करने में, विद्या धारण करते समय, खाते-पीते वक्त शर्म या लज्जा का त्याग करने पर ही सुखी रहा जा सकता है। जो लोग ऐसा करते हैं वे हमेशा खुद का नुकसान करते हैं। आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि जीवन में धन, विद्या और भोजन संबंधित कामों में कभी शर्म नहीं करनी चाहिए अन्यथा शर्म के चक्कर में आपके कर्म भी फूट सकते हैं।
पैसों का लेन-देन बेझिझक करें-
चाणक्य नीति के अनुसार जीवन में पैसों का बड़ा महत्व है। पैसों की कमी या अभाव से जीवन और परिवार को चलाना असंभव है। ऐसे में पैसों के लेनदेन में शर्म या झिझक नहीं रखनी चाहिए। बेझिझक होकर अपने पैसे मांगे। वहीं किसी को जरूरत के समय उधार दें तो उसे वापिस लेते समय बिल्कुल शर्म न करें अन्यथा आपको धन की हानि उठानी पड़ेगी।
खाना खाने में शर्म को झोड़ें
चाणक्य ने खाना खाने को लेकर भी कुछ नियम बताए हैं। चाणक्य नीति के अनुसार यदि जो लोग खाना खाने के दौरान शर्म महसूस करते हैं या चाहते भी मांग नहीं पाते हैं वे अक्सर भूखे ही रह जाते हैं। ऐसे में चाणक्य का कहना है कि जब भी भोजन करने बैठे पेट भर कर भोजन करें, आधे पेट कभी न उठें। विशेषकर जब किसी के यहां अतिथि बनकर जाएं तो भोजन करते समय शर्म न करें नहीं तो आप ही भूखे रह जाएंगे और अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करेंगे।
शिक्षकों से पूछें हर सवाल का उत्तर
ये चाणक्य ही थे जिन्होंने एक आम युवा को देश का राजा बनवा दिया था। क्योंकि वह युवक जिज्ञासु था और अपनी हर बात गुरु से पूछ लिया करता था, इसलिए वह एक सशक्त राष्ट्राध्यक्ष बनकर उभरा और दुनिया में उसकी धाक जमी। ऐसे ही आज के युवा हैं, जो शिक्षकों या मार्गदर्शकों से ज्ञान तो लेते हैं, लेकिन मन की जिज्ञासाओं को शांत करने में झिझक महसूस करते हैं। जिसके चलते वे कई जगह विफल हो जाते हैं। चाणक्य नीति कहती है कि शैक्षणिक स्थान पर जब विद्या ग्रहण करने जाएं तो अपने अध्यापक से अपने मन में उत्पन्न हो रहे सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करें क्योंकि वहां हम सीखने के उद्धेश्य से जाते हैं। यदि आप शर्म करेंगे और उपने मन की कुंठाओं का हल नहीं प्राप्त कर पाएंगे तो अज्ञान के अंधेरे से आपका भविष्य घिर जाएगा और आप जीवन में कभी उन्नति नहीं कर पाएंगे।
Published on:
15 May 2018 03:59 pm
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